बिहार में जाति जनगणना के बाद यादवों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर मीडिया का एक खेमा बखेड़ा खड़ा कर दिया है। सरकार में यादव मंत्रियों की संख्या पर कोहराम मचा है। इसी परिप्रेक्ष्य में अब यादवों के खिलाफ नयी गोलबंदी की कोशिश की जा रही है। उस पर हकमारी का आरोप लगाया जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि पिछड़ा के नाम पर सर्वाधिक लाभ यादव उठा रहे हैं।
यादवों पर लगाये जा रहे आरोप को सिरे खारिज नहीं किया जा सकता है। 29 सदस्यीय राज्य सरकार में यादव मंत्रियों की संख्या 8 है। 243 सदस्यीय विधान सभा में यादव विधायकों की संख्या 52 है। 38 जिला परिषदों में 11 जिला परिषद अध्यक्ष यादव हैं। इसे देखकर आपको लगता होगा कि यह बड़ी हिस्सेदारी है। लेकिन यह स्पष्ट कर देना भी जरूरी है कि यादवों की इस हिस्सेदारी में किसी आरक्षण का योगदान नहीं है। अनारक्षित सीट से चुनाव जीत कर आते हैं। इन सीटों पर यदि यादव चुनाव नहीं जीते तो कोई पिछड़ा या अतिपिछड़ा चुनाव नहीं जीतेगा, बल्कि इन सीटों पर यादव की जगह राजपूत या भूमिहार ही निर्वाचित होगा। व्यवहार में यादव जाति राजपूत और भूमिहारों के वर्चस्व को रोककर अपना वर्चस्व बना रहा है। राजपूत और भूमिहारों का हक यादव मार रहा है। लेकिन बताया यह जा रहा है कि यादव पिछड़ी जातियों का हक मार रहा है।
हमारा मानना है कि यादव को पिछड़ा वर्ग की श्रेणी से निकालकर सामान्य श्रेणी में रख दिया जाए और उसके लिए सवर्णों की तरह 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान कर दिया जाए। केंद्र सरकार ने बिना किसी सर्वे या गणना के सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण तय कर दिया है। अब बिहार सरकार ने यादवों की संख्या गिनकर 14.26 प्रतिशत बताया है, जबकि सवर्णों की संख्या साढ़े 15 प्रतिशत है। सवर्णों के अनुपात में ही 10 प्रतिशत यादवों के लिए आरक्षण लागू कर दिया जाए। इसके लिए अब संवैधानिक आधार भी सरकार के पास है।
यादवों को सामान्य श्रेणी में रखकर 10 प्रतिशत आरक्षण देने में कोई संवैधानिक अड़चन भी नहीं आएगी। क्योंकि जिस संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सवर्णों को आरक्षण दिया गया है, उसी व्यवस्था के तहत यादवों को भी आरक्षण दिया जा सकता है। और 50 फीसदी का वैरियर भी नहीं टूटेगा। एक और लाभ है कि पिछड़ा वर्ग की श्रेणी के यादवों के बाहर आने के बाद उसकी आबादी लगभग 49 फीसदी हो रह जाएगी। तीन फीसदी पिछड़ा महिला वाला आरक्षण काटकर अनुसूचित जाति को दिया जाये तो उन्हें से जनसंख्या के समतुल्य आरक्षण मिल जाएगा।
राज्य सरकार के लिए यह बेहतर विकल्प है कि वह यादवों को सामान्य श्रेणी में डालकर उसे सवर्णों की तरह 10 फीसदी आरक्षण तय कर दे और फिर ओबीसी, एससी और एसटी के बीच आरक्षण का कोटा पुनर्निर्धारित कर दे। इससे कई समस्याओं का एक साथ समाधान हो जाएगा। यादवों पर हकमारी का आरोप भी नहीं लगेगा और अन्य लोगों का हक भी बचा रहेगा।