भारतीय राजनीति में चाचा-भतीजा का रिश्ता परवान पर है। सत्ता संग्राम में चाचा को निपटाने के लिए भतीजा का भी खूब इस्तेमाल होता है। कई बार चाचा-भतीजा आपस में फरियाते भी नजर आते हैं। महाराष्ट्र में शरद पवार-अजीत पवार, उत्तर प्रदेश में शिवपाल यादव-अखिलेश यादव, बिहार में पशुपति पारस-चिराग पासवान के रिश्ते से आप परिचित ही होंगे। नीतीश कुमार-तेजस्वी यादव का रिश्ता भी करवट बदलते रहता है – कभी आमने-सामने तो कभी साथ-साथ।
रिश्तों के इस सत्ता सरोकार में एक दिन के लिए हमने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ चाचा-भतीजे का रिश्ता जोड़ लिया है। जब से MY का कायाकल्प कमाई (KMY) के रूप में हुआ है, तब से यह रिश्ता सहज भी लगने लगा है। नीतीश चा (चाचा) ने गांधी जयंती के मौके पर बड़े धूमधाम से जातीय गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक करवायी। तकनीकी भाषा में इसे जाति आधारित गणना कहा गया है, लेकिन व्यावहारिक रूप से यह जाति जनगणना थी और सबसे पहले सरकार ने सभी जातियों की आबादी सार्वजनिक की। जिसे जाति आधारित गणना कहा जा रहा है, उसकी विस्तृत रिपोर्ट नीतीश चा विधान सभा में रखेंगे। 6 नवंबर से विधान सभा का शीतकालीन सत्र शुरू हो रहा है। संभव है 7 नंवबर को सरकार जाति आधारित गणना की रिपोर्ट रखेगी।
राज्य सरकार ने जाति आधारित गणना के आंकड़ों को संग्रहित करने के लिए एक पोर्टल एवं एप बनवाया था। जातीय गणना का कार्य संपन्न होने के बाद पोर्टल एवं एप को डिएक्टिव कर दिया है। अब सभी डाटा सामान्य प्रशासन विभाग के पास है। इस पूरे कार्य के नोडल अधिकारी मो. सोहैल हैं। डाटा विश्लेषण का काम कौन रहा है, यह पूरी तरह गोपनीय रखा गया है। योजना और विकास विभाग को भी इस काम में नहीं लगाया गया है।
जातीय सर्वे के समय सरकार ने 17 तरह के आंकड़े संकलित करवाये थे। उसमें जाति, संख्या, लिंग और धर्म के आंकड़े सार्वजनिक कर दिये गये हैं। शेष 13 आंकड़ों की जानकारी राज्य सरकार विधान सभा में देगी। डाटा संकलन की प्रक्रिया, पद्धति और वर्गीकरण इतना उलझा हुआ है कि सरकार बहुत साफ-साफ नहीं बता पाएगी। उदाहरण के लिए एक कॉलम है कामकाज का। अगर कोई सरकारी कर्मचारी है तो वह पंचायत सचिव है या मुख्य सचिव, सबके लिए एक ही कॉलम है सरकारी नौकरी। संविदा पर काम करने वालों को भी टुकड़ों में बांट दिया गया है। सरकार ने 17 प्रकार के आंकड़े एकत्रित किये हैं, उनमें से शुरू के आठ प्रकार के डाटा का विकास के किसी पैमाने पर कोई उपयोग नहीं है। वह सिर्फ संख्या गिनने के काम आया है। कॉमल 9 में शैक्षणिक योग्यता, 10 में कार्यकलाप, 11 में आवासीय स्थिति, 12 में अस्थायी प्रवास की स्थिति, 13 में कंप्यूटर या लैपटॉप, 14 में मोटरयान, 15 में कृषि भूमि, 16 में आवासीय भूमि और 17 में सभी प्रकार की मासिक आय से संबंधित आकड़े एकत्रित किये गये हैं। यही आकड़े बताएंगे कि सरकारी रिकार्ड में किसे अमीर माना जाएगा या किसे गरीब।
इन आंकड़ों के आधार पर सरकार यह नहीं बता पायेगी कि आईएएस, आईपीएस, बिहार प्रशासनिक सेवा, बिहार पुलिस सेवा या बिहार सचिवालय सेवा में नौकरी करने वालों में किस जातीय वर्ग के कितने लोग हैं। सरकार यह भी नहीं बता पायेगी कि संविदा पर नियुक्त कर्मचारियों में वर्गीय हिस्सेदारी क्या है। सरकार यह भी नहीं बता पायेगी कि विधान सभा या विधान परिषद में कार्यरत अधिकारियों या कर्मचारियों की जातीय हिस्सेदारी क्या है। विकास के पैमाने पर बात करें तो सरकार यह भी नहीं बताएगी कि दूसरे प्रांत के लोग जो बिहार में नौकरी या व्यापार कर रहे हैं, वह किस जाति के हैं और क्या काम कर रहे हैं। सरकार यह भी नहीं बताएगी कि दूसरे प्रांत में जो बिहार के लोग रह रहे हैं, वह कौन सा काम कर रहे हैं और बिहार में उनकी प्रोपर्टी कितनी है। सरकार के पास यह भी डाटा नहीं है कि दूसरे प्रदेश के लोग किस-किस जाति के हैं।
दरअसल जाति आधारित गणना का मकसद सिर्फ जाति की वास्तविक संख्या गिनना था, ताकि जाति की राजनीति को मजबूत किया जा सके। इसका लक्ष्य भी पूरा हो गया। सरकार ने जातीय आबादी बता दी। इस जातीय आबादी के आधार पर सरकार आरक्षण के दायरे और प्रतिशत में कुछ बदलाव भर कर सकती है। इसके अलावा सरकार के पास करने का कोई विकल्प नहीं है। जब आंकड़ों के संकलन और विश्लेषण में योजना और विकास विभाग की कोई भूमिका ही नहीं है तो किस आधार पर विभाग विकास का रोडमैप बनाएगा।
नीतीश चा, जातीय संख्या के आधार राजनीतिक गोलबंदी चाहते हैं और उसकी भूमिका तैयार हो गयी है। जो कुछ कसर बाकी रह गया है, वह विधान सभा में रिपोर्ट पर मचे संग्राम से पूरा हो जाएगा। सरकार ने संकलित आंकड़ों के आधार पर जो रिपोर्ट जारी की है या जारी करेगी, उस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। क्योंकि सरकारी आंकड़ों को ही सब जगह मान्यता और स्वीकार्यता मिलती है। बिहार सरकार की ओर से जारी जातीय जनगणना की रिपोर्ट पर राष्ट्रव्यापी राजनीति हो सकती है, जातिगणना राष्ट्रीय मुदद्दा बन सकता है, लेकिन सरकार एक भूमिहार, राजपूत या यादव जमींदार के कब्जे में पड़ी सैकड़ों एकड़ जमीन में से एक धुर भी जमीन किसी चमार, रजवार या कहार को नहीं दिलवा सकती है। क्योंकि सरकार की न ऐसी कोई मंशा है और न संकल्प।