पटना प्रमंडल के सोन-गंगा के मैदानी इलाके में फैला है शाहाबाद। पहले शाहाबाद जिला हुआ करता था, अब प्रशासनिक ढांचे में इसका अस्तित्व समाप्त हो गया है। हालांकि पुलिस प्रशासन में शाहाबाद अब भी मौजूद है।
शाहाबाद में अब चार जिले भोजपुर, रोहतास, कैमूर और बक्सर हैं। यहां लोकसभा की साढ़े तीन सीट है। आरा, बक्सर और सासाराम लोकसभा सीट पूरी तरह से शाहाबाद की भौगोलिक सीमा में है, लेकिन काराकाट लोकसभा का आधा हिस्सा औरंगाबाद जिले में आता है। काराकाट में 6 विधानसभा क्षेत्र हैं। नोखा, डिहरी और काराकाट रोहतास जिले में पड़ता है, जबकि गोह, ओबरा और नवीनगर औरंगाबाद जिले में है। आरा लोकसभा सीट भोजपुर जिले की सभी सात विधान सभा सीटों को मिलाकर गठित की गयी है। बक्सर लोकसभा क्षेत्र में बक्सर जिले की चार विधान सभा सीट के अलावा कैमूर जिले की रामगढ़ और रोहतास जिले की दिनारा सीट शामिल है, जबकि सासाराम लोकसभा सीट में तीन विधान सभा कैमूर और तीन विधान सभा क्षेत्र रोहतास जिले के शामिल हैं।
बिहार की राजनीतिक वास्तविकता है कि 2008 में हुए परिसीमन के बाद राजद की राजनीतिक संभावनाओं पर ग्रहण लग गया है। हालांकि इसमें बड़ी भूमिका गठबंधनों के जातीय समीकरण की रही है। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के साथ राजद शाहाबाद से पूरी तरह साफ हो गया है। शाहाबाद की तीन सीटों सासाराम, आरा और बक्सर पर 2014 से भाजपा का कब्जा बरकरार है। काराकाट सीट भी भाजपा समर्थित पार्टियों के खाते में जाती रही है। 2009 और 2019 में भाजपा के समर्थन से जदयू के महाबली सिंह की जीत हुई थी, जबकि 2014 में भाजपा के सहयोग से उपेंद्र कुशवाहा (रालोसपा) निर्वाचित हुए थे। 2009 में मीरा कुमार सासाराम से निर्वाचित हुई थीं और लोकसभा की स्पीकर भी बनी थीं, लेकिन फिर वे लोकसभा का मुंह नहीं देख सकीं।
शाहाबाद नक्सलवाद और समाजवाद की भूमि रही है। नक्सलवाद के बड़े-बड़े आंदोलन इसी जमीन पर हुए और समाजवाद की कई धरोहर इसी जमीन से निकले। लेकिन बदलाव की यह जमीन भाजपा के लिए उर्वर साबित हो रही है। भाजपा का अजये दुर्ग बनता दिख रहा है। भाजपा की फसल यहां लहलहा रही है तो इसकी वजह भी है। बिहार की राजनीति में भाजपा जदयू की गर्दन पर सवार होकर राजनीति करती रही है। जदयू के साथ समाजवाद की एक धारा जुड़ी रही है। इसका भरपूर लाभ भाजपा ने उठाया है। जदयू की गर्दन पर सवार होकर भाजपा अपना विस्तार करती रही है और जब जरूर पड़ी तो भाजपा ने जदयू की गर्दन मरोड़ने में परहेज नहीं किया।
2024 की राजनीति एक नये माहौल में हो रहा है। 1991 के बाद पहली बार लालू यादव और नीतीश कुमार एक साथ मिलकर लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। 2015 में जब दोनों मिलकर एक साथ चुनाव मैदान में थे तो भाजपा हासिये पर पहुंच गयी थी। इस बार फिर लालू-नीतीश एक साथ हैं। इनके साथ कांग्रेस और वामपंथी भी सहयोगी हैं।
वैसी स्थिति में शाहाबाद की जमीन पर संघर्ष काफी रोचक हो जाएगा। भाजपा ने सवर्ण और बनियों के अलावा अन्य जातियों में भी पैठ बनाने की पूरी कोशिश की है। लेकिन महागठबंधन की जमीनी स्तर पर निष्क्रियता भाजपा के अनुकूल साबित हो सकती है। हालांकि लोकसभा का समय नजदीक आने के साथ ही हर दल और गठबंधन की सक्रियता बढ़ती जा रही है।