प्रशासनिक रूप से मगध प्रमंडल में लोकसभा की पाचं सीट आती हैं। जहानाबाद, औरंगाबाद और गया लोकसभा सीट पूरी तरह मगध प्रमंडल की प्रशासनिक सीमा क्षेत्र में आती है, जबकि नवादा और काराकाट का जुड़ाव दूसरे प्रमंडलों के साथ है।

जहानाबाद लोकसभा सीट के तहत जहानाबाद जिले का जहानाबाद, घोसी और मुखदुमपुर विधान सभा क्षेत्र, अरवल जिले के अरवल और कुर्था तथा गया जिले की अतरी विधान सभा सीट आती है। गया लोकसभा सीट के तहत गया के जिले 6 विधान सभा सीट शेरघाटी, बाराचट्टी, बोधगया, गया शहर, बेलागंज और वजीरगंज आती है। औरंगाबाद लोकसभा सीट के तहत औरंगाबाद जिले की औरंगाबाद, रफीगंज और कुटुंबा विधान सभा सीट और गया जिले के टिकारी, गुरुआ और इमामगंज विधान सभा सीट आती है। काराकाट लोकसभा सीट में औरंगाबाद जिले की ओबरा, नवीनगर और गोह तथा रोहतास जिले की डिहरी, नोखा और काराकाट विधान सभा सीट आती है। रोहतास जिला पटना प्रमंडल के प्रशासनिक क्षेत्राधिकार में आता है। नवादा लोकसभा सीट में नवादा जिले की रजौली, हिसुआ, नवादा, गोविंदपुर और वारसलीगंज विधान सभा सीट तथा शेखपुरा जिले की बरबीघा विधान सभा सीट आती है। बरबीघा मुंगेर प्रमंडल के क्षेत्राधिकार में आता है।
2019 के लोकसभा चुनाव में मगध प्रमंडल में राजद और जदयू ने नया प्रयोग किया था। दोनों पार्टियों ने अतिपिछड़ी जातियों को टिकट दिया था। जदयू ने भूमिहार और यादव प्रभाव वाले जहानाबाद सीट पर कहार जाति के चंदेश्वर चंद्रवंशी को अपना उम्मीदवार बनाया था। जहानाबाद से राजद के उम्मीदवार सुरेंद्र यादव थे, जबकि निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भूमिहार जाति के पूर्व सांसद अरुण कुमार मैदान में थे। यादव और भूमिहार को परास्त कर कहार चंदेश्वर चंद्रवंशी ने जीत दर्ज की। पहली बार इस सीट से यादव और भूमिहार के गढ़ को एक कहार ने दरका दिया था।
औरंगाबाद में राजद ने भाजपा के राजपूत उम्मीदवार एवं सांसद सुशील कुमार सिंह के खिलाफ दांगी जाति के उपेंद्र प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया था। तकनीकी रूप से उपेंद्र प्रसाद हम पार्टी के उम्मीदवार थे, लेकिन व्यावहारिक रूप से वे राजद के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बने हुए थे। इस सीट पर कांग्रेस के पूर्व सांसद निखिल कुमार को हाशिये पर धकेल कर उपेंद्र प्रसाद को टिकट दिया गया था। हालांकि इस सीट पर उपेंद्र प्रसाद की हार हो गयी थी, लेकिन हार-जीत का मार्जिन पहले की तुलना में काफी कम हो गया था। उपेंद्र प्रसाद की उम्मीदवारी इसलिए महत्वपूर्ण हो गयी थी कि अब तक यह सीट राजपूतों के लिए माना जाता था। सभी प्रमुख पार्टियों के उम्मीदवार राजपूत जाति के ही होते थे। 2019 पहला मौका था, जब राजपूत उम्मीदवार के खिलाफ अतिपिछड़ी जाति दांगी के उपेंद्र प्रसाद मुख्य मुकाबले में थे और जबरदस्त टक्कर भी दी।
मगध की जमीन पर यह पहला प्रयोग था, जबकि स्थापित एवं दबंग जातियों के खिलाफ अतिपिछड़ी जातियों को मैदान में उतारा गया और दोनों ही सीटों का सामाजिक समीकरण बदल गया। चुनाव ने यह भी साबित कर दिया कि अब उम्मीदवारी की दिशा एवं जाति बदलने लगी है और नयी सामाजिक शक्तियों का हस्तक्षेप बढ़ने लगा है। इसका असर 2024 के चुनाव में भी दिखेगा।