पूर्णिया प्रमंडल के चार जिलों पूर्णिया, अररिया, किशनगंज एवं कटिहार में विधान सभा की कुल 24 सीटें हैं और चार लोकसभा क्षेत्रों में विभाजित हैं। आसपास के प्रमंडलों के साथ इनका कोई लेन-देन नहीं है। अररिया जिले में विधान सभा की 6 सीट हैं। इसमें नरपतगंज, रानीगंज, फारबिसगंज, अररिया, जोकीहाट और सिकटी शामिल हैं। इन्हीं 6 सीटों को मिलाकर अररिया लोकसभा गठित किया गया है।
किशनगंज लोकसभा सीट में किशनगंज जिले की सभी चार सीट और पूर्णिया जिले की दो विधानसभा सीट शामिल हैं। इस लोकसभा सीट के तहत किशनगंज जिले की बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किशनगंज और कोचाधामन तथा पूर्णिया जिले के अमौर और बायसी विधान सभा सीट आती है। कटिहार जिले में विधानसभा की 7 सीटें हैं। इसमें से कटिहार लोकसभा सीट के तहत कटिहार, कदबा, बलरामपुर, प्राणपुर, मनिहारी और बरारी विधान सभा सीट आती है। वहीं पूर्णिया जिले में विधान सभा की 7 सीटें हैं। पूर्णिया लोकसभा सीट के तहत पूर्णिया जिले की कसबा, बनमनखी, रुपौली, धमदाहा और पूर्णिया तथा कटिहार जिले की कोढ़ा विधान सभा सीट आती है।
पूर्णिया प्रमंडल को सीमांचल भी कहा जाता है। सीमांचल के तीन जिलों कटिहार, अररिया और किशनगंज जिलों में मुसलमान वोटरों की संख्या अन्य क्षेत्रों की तुलना में काफी ज्यादा है। किशनगंज लोकसभा सीट पर 1952 से अब तक मुसलमान सांसद ही निर्वाचित होते रहे हैं। इसमें सिर्फ एक बार 1967 प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के लखनलाल कपूर निर्वाचित हुए थे।
पिछले विधान सभा चुनाव से बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम की संसदीय यात्रा शुरू हो गयी है। 2020 के विधान सभा चुनाव में एआईएमआईएम के 5 विधायक निर्वाचित हुए थे। हालांकि इनमें से 4 राजद में शामिल हो गये थे। अभी विधान सभा में एक मात्र विधायक अख्तरूल ईमान हैं। पिछले जिन पांच सीटों पर एआईएमआईएम निर्वाचित हुई थी, वे तीन जिलों से आती हैं। अररिया जिले के जोकीहाट, किशनगंज जिले के बहादुरगंज और कोचाधामान तथा पूर्णिया जिले के बायसी और अमौर शामिल हैं। विधान सभा की पांच सीटों पर एआईएमआईएम जीत सबके लिए अप्रत्याशित थी, लेकिन असदुद्दीन ओवैसी की शुरुआत थी। 2024 के चुनाव में एआईएमआईएम के पूर्णिया प्रमंडल की सभी चार सीटों पर चुनाव लड़ने की संभावना है।
सीमांचल एआईएमआईएम के लिए प्रवेश द्वार शामिल हुआ है। उत्तर प्रदेश और बिहार में मुसलमानों की बड़ी आबादी है और एआईएमआईएम इन्हीं वोटों की राजनीति करती है। एक पार्टी के रूप में आधार विस्तार करना उसका संवैधानिक अधिकार है। उस पार्टी की कोशिश है कि मुसलमानों के साथ अन्य जातियों में भी अपनी पैठ बनाएं। एआईएमआईएम की कोशिश का प्रत्यक्ष लाभ भाजपा को होता हुआ दिखता है। स्वभाविक रूप से इसका नुकसान भी किसी को उठाना पड़ रहा होगा। लेकिन अब इतना तय हो गया है कि सीमांचल में एआईएमआईएम एक मजबूत ताकत बन गयी है। उसकी सौदेबाजी की ताकत भी बढ़ गयी है। वैसी स्थिति में महागठबंधन के साथ एआईएमआईएम के समझौते से इंकार भी नहीं किया जा सकता है।