लोकसभा टिकट के एक दावेदार से मुलाकात हुई। हाल ही भाजपा में आए हैं। अपने क्षेत्र विशेष के लिए खुद को भाजपा का सबसे उपयुक्त उम्मीदवार मान रहे हैं। लेकिन नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने की अफवाह या खबर से परेशान हैं। नीतीश कुमार के पिछले एक दशक के व्यवहार से अफवाह और खबर के बीच की दीवार ढह गयी है। कौन सी खबर अफवाह हो जाए या कौन सी अफवाह खबर बन जाए, कोई नहीं जानता है। वैसी स्थिति में उक्त दावेदार की परेशानी को आसानी से समझा जा सकता है। वे परेशान हैं कि जदयू भाजपा के साथ आता है तो उनके टिकट मिलने संभावना धूमिल हो जाएगी, क्योंकि यह सीट फिर जदयू के कोटे में चली जाएगी। उनका मानना है कि अभी हम टिकट के लिए दिल्ली में लांबिंग कर रहे थे। नीतीश भाजपा में आए तो टिकट ही अधर में लटक जाएगा।
यह पीड़ा किसी एक पार्टी या दावेदार की नहीं हैं। भाजपा और जदयू के वर्तमान सांसदों को छोड़ दें तो टिकट के रेस में शामिल हर दल, गठबंधन और दावेदार की स्थिति एक समान है। भाजपा सभी 40 सीटों पर जोरदार ढंग से तैयारी कर रही थी। भाजपा के साथ नीतीश के आने की चर्चा के बाद जदयू वाली सीटों पर उसकी तैयारी शिथिल पड़ गयी है। भाजपा के साथ सबसे बड़ी बात है कि वह अपने सहयोगियों की राजनीतिक अर्थी भी अपने ही कंधों पर ढोना चाहती है। इसलिए लोजपा, हम या रालोजद जैसी पार्टियों पर भाजपा को भरोसा नहीं होता है और उम्मीदवार भी अपने की कोटे से देती है। 2024 में चिराग पासवान, पशुपति पारस, उपेंद्र कुशवाहा या जीतनराम मांझी ‘एकांगी’ हो गये हैं और उन्हें अपनी एक सीट के अलावा कुछ चाहिए भी नहीं। लेकिन नीतीश आते हैं तो इन सबका भी समीकरण गड़बड़ाने लगेगा। ये लोग भी नीतीश के पलटीमार से भयभीत हैं।
यही हाल महागठबंधन का भी है। वहां भी नीतीश की चाल का भरोसा नहीं है। तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले कांग्रेस-राजद-वामदल गठबंधन में नीतीश के साथ भी और नीतीश के बाद भी की स्थिति को लेकर अलग-अलग मंथन शुरू हो गया है।
भाजपा भी नीतीश की अविश्वसनीय भूमिका को और भयानक बनाए रखना चाहती है। भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व नीतीश के मुद्दे पर मौन है, जबकि प्रदेश नेतृत्व भी ज्यादा रुचि नहीं ले रहा है। इससे नीतीश भी परेशान हैं। पलटी मारने के बाद भाजपा की पटखनी मारने की भी पूरी गुंजाईश है। वैसी स्थिति में नीतीश की और फजीहत स्वाभाविक है।
चुनावी गठबंधन को लेकर सभी दलों और गठबंधनों के बीच अविश्वास का माहौल है। कोई भी किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है। उसमें नीतीश की चाल ब्लाईंड गेम की तरह है। पार्टी नेताओं की अपनी परेशानी है। लेकिन सबसे बडी़ परेशानी टिकट के दावेदारों की हो गयी है। वे अब बहुत उत्साह के साथ वोटरों के बीच नहीं जा रहे हैं। टिकट के दावेदार जनता के लिए मजाक के पात्र बन गये हैं। उनकी राजनीतिक संभावनाओं के हलक में हड्डी अटक गयी है। वैसी स्थिति में उनके पास उम्मीदों का पानी गटकने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।
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