पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव। कड़ाके की ठंड के बीच अलाव जलाकर कनकनी को कनऐंठी देने का प्रयास कर रहे थे। संक्रांत के मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का सरकारी आवास 10 सर्कुलर रोड गुलजार था। सोमवार को एंट्री फॉर आल था मीडिया वालों को छोड़कर। कैमरा और आईडी लेकर चक्कर मार रहे पत्रकारों के लिए प्रवेश प्रतिबंधित था। प्रतिबंध का यह सिलसिला तेजस्वी यादव के उत्थान के साथ बढ़ता गया है। तेजस्वी यादव के राजनीतिक कद बढ़ने के साथ 10 नंबर का दरवाजा आम से खास होता चला गया। राजनीतिक दरबार कुछ खासलोगों के लिए दरबा में तब्दील होता चला गया।
सोमवार को भी दरवाजा बंद ही था, लेकिन छोटे से गेट से प्रवेश सुलभ था सुरक्षा जांच के साथ। हम लगभग साढ़े 12 बजे दोपहर 10 नंबर के परिसर में पहुंचे। गेट के अंदर विधायक सुदय यादव और रणविजय साहू परिचितों का स्वागत कर रहे थे। रास्ते में लोगों से मुलाकात करते हुए मंडप के पास पहुंचे, जहां लालू यादव का ‘सत्ता दरबार’ लगा हुआ था। उस मंडप में अब सत्ता से जुड़े लोग ही पहुंच पाते हैं। जब हम पहुंचे तो विधान सभा अध्यक्ष अवध विहारी चौधरी प्रस्थान कर रहे थे। हमारे पहुंचने से कुछ देर पहले ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दही-चूड़ा खाकर प्रस्थान कर चुके थे। लालू आवास का कोहड़ा की सब्जी उन्हें ज्यादा अच्छी लगी और उन्होंने तारीफ भी की। मुख्यमंत्री अपने पीछे भाव-भंगिमा, पलटी की आशंका और लालू यादव द्वारा स्वागत से जुड़ी चर्चा छोड़ जा चुके थे।
इधर हम पत्रकार साथियों के साथ बातचीत में जुटे थे। बातचीत में यह बात भी सामने आयी कि 2017 के बाद पहली बार 10 नंबर में दही-चूड़ा भोज का आयोजन किया गया है। संभवत: 2016 में दही-चूड़ा भोज का आयोजन 5 सकुर्लर रोड में आयोजित किया था पत्रकारों के लिए। यह आवास उपमुख्यमंत्री के रूप में तेजस्वी यादव को आवंटित था। फिलहाल तेजस्वी उसी आवास में रह रहे हैं। कुछ पुराने पत्रकारों ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि ऐसे आयोजन में लालू यादव खुद घुम-घुम का जायजा लेते थे। दही भी परोसते थे। उस समय खिलाने का काम कार्यकर्ताओं के जिम्मे था। लेकिन सोमवार के आयोजन में खिलाने का जिम्मा कैटरिंग वाली किसी कंपनी को सौंप दिया गया था। एकाध कार्यकर्ता ही परोसते हुए नजर आये। लेकिन खिलाने का इंतजाम काफी व्यवस्थित था।
इसी दौरान पार्टी के एक कार्यकर्ता ने कहा कि यह आयोजन कार्यकर्ताओं के उत्साह का उत्सव बन जाता है। लालू यादव के साथ जुड़े लोग ऐसे आयोजनों में सहभागिता अपना हक और अधिकार समझते हैं। यही कारण है कि न समर्थकों का काफिला थम रहा है, न खिलाने वाले थक रहे हैं। देर शाम तक समर्थकों के पहुंचने का सिलसिला जारी था।
हम भी कुछ वकील और पत्रकार साथियों के साथ पांत में बैठ गये। दही-चूड़ा के साथ तिलकूट, भूरा और सब्जी परोसी गयी। दही परोसने वाले परिचित थे, सो उन्होंने पत्तल में दही भर दिया। मना करने पर झिड़क भी दिया—अहीर ह आउ तोहरा दही न पचते हव (आप अहीर हैं और आपको दही नहीं पच रहा है)।
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