नवंबर, 2005 से बिहार में कुर्मी राज चल रहा है। राजा के कहार और सलाहकार बदलते रहे, लेकिन राज चलता रहा, निर्बाध। जिसने भी राज सत्ता को चुनौती दी, उसकी मुड़ी मरोड़ दी गयी। इसमें न पार्टी का बंधन था और न जाति का लिहाज। जिसने भी रास्ते में कांटे बिछाने की कवायद की, पर कतर दिये गये।
इस राज में पालकी ढोने वाले कहारों की चरित्र और चेहरा बदलता रहा। कहारों का झंडा, बैनर और पालकी बदलती रही, लेकिन सत्ता का चरित्र नहीं बदला। सत्ता की पालकी ढोने वाले कहार हरा हों या भगवा, कहार बनते ही जयकारा में जुट जाते हैं। यह भी संयोग है कि कुर्मी राज में यादवों को राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक नुकसान पहुंचाने का सुनियोजित अभियान चलाया गया। इतना ही नहीं, बल्कि यादवों के खिलाफ नफरत बो कर ही कुर्मी राज लहलहाता रहा। यह नफरत सवर्णों को सुकून देता था। इसलिए नफरत की राजनीति में सवर्ण भी कुर्मी सत्ता के साथ खड़े रहे। लेकिन सत्ता के साथ खड़े यादव नफरत की राजनीति से दूर विकास के लिए प्रतिबद्ध रहे। सत्ता में बैठे यादवों की प्रतिबद्धता बिहार की जनता के प्रति रही थी। सरकारी नीतियों का लाभ अधिकतम लोगों तक पहुंचे, वह यही कोशिश कर रहे थे। आज जिस विकास की बात राज्य सरकार करती है, वह यादव मंत्रियों के कारण ही है।
सरकार कहती है कि बिहार का विकास हो रहा है। बिहार में विकास तीन क्षेत्रों में दिख रहा है और दिखाया जा रहा है। वह तीनों विभाग लंबे समय तक यादव मंत्रियों के पास रहे हैं।
बिहार में सड़क की गुणवत्ता और हर टोले-कस्बे तक पहुंच का श्रेय नंदकिशोर यादव को जाता है। नंदकिशोर यादव इस विभाग के लंबे समय तक मंत्री रहे हैं। उनके ही कार्यकाल में सड़कों की लंबाई और चौड़ाई बढ़ती गयी। सड़कें भी उत्क्रमित होती रहीं और उनकी श्रेणी बढ़ती गयी। यह नंदकिशोर यादव की दूरदृष्टि का ही परिणाम है कि बिहार के किसी भी गांव से राजधानी पटना तक पहुंच आसान हो गयी है। हम तो सरकार से आग्रह करेंगे कि वह बताये कि 2005 से अब तक कितनी सड़कें बनी हैं और उसमें नंदकिशोर यादव के कार्यकाल में कितना काम हुआ है।
हर घर बिजली भी विकास का बड़ा पैमाना है। हर घर बिजली का श्रेय ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव को जाता है। लंबे समय तक ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ही रहे हैं। उनके ही कार्यकाल में हर घर बिजली का सपना साकार हो सका है। आज दूरदराज के गांवों में रात में बिजली के खंभे पर बल्ब जलते नजर आता है तो इसका श्रेय भी बिजेंद्र प्रसाद यादव को जाता है। सरकार को यह बताना चाहिए कि पिछले 18 वर्षों में बिजेंद्र यादव के कार्यकाल में बिजली की उपलब्धता से कितना गांव रौशन हुआ है ।
सरकारी स्कूलों में स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति का श्रेय तेजस्वी यादव को जाता है। 1999 के बाद से स्कूलों में शिक्षकों की बहाली रोक दी गयी थी। जो शिक्षक रिटायर्ड हो जा रहे थे, वह पद समाप्त कर दिया जा रहा था। संविदा के आधार पर शिक्षकों का नियोजन किया जा रहा था। वह नियोजन भी सरकार के बजाये स्थानीय निकाय की ओर से किया जा रहा था। लेकिन अगस्त, 2022 में सत्ता में आने के बाद तेजस्वी यादव ने शिक्षकों का भविष्य बदल दिया। सरकारी शिक्षकों से विहीन हो रहे स्कूलों में शिक्षकों की बाढ़ आ गयी। ढाई लाख से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति राजद के कार्यकाल में हुई। इन शिक्षकों की नियुक्ति बीपीएससी के माध्यम से हुई और स्थायी रूप से की गयी। सरकार के पिछले कार्यकाल में शिक्षा विभाग राजद के पास था और मंत्री प्रो. चंद्रशेखर थे। हर सरकारी स्कूल में सरकारी शिक्षक की अवधारणा को तेजस्वी यादव ने जमीन पर उतारा। उनकी प्रतिबद्धता लोगों को रोजगार देने की थी और यह विभाग उनकी पार्टी के पास था। इसलिए अपनी प्रतिबद्धता को जमीन पर उतारने में सफल भी हुए। सरकार को यह भी बताना चाहिए कि 2005 से अगस्त 2022 तक सरकारी स्कूलों में कितने स्थायी शिक्षक नियुक्त किये गये और राजद के कार्यकाल में कितने स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति स्कूलों में की गयी।
बिहार के विकास की असली गाथा यादव मंत्रियों ने लिखी है। उनके जिम्मे जो भी विभाग आया, उसमें पूरी निष्ठा से काम किया। इसलिए विकास दिखता भी रहा। कुर्मी राज में यादव मंत्रियों को यह चिंता रहती थी कि काम के आधार पर उनका मूल्यांकन होने वाला है। अन्य जाति के मंत्रियों के कार्यों का मूल्यांकन उनकी जातिगत उपयोगिता के आधार किया जाता रहा है, इन जातियों के लिए परिणाम महत्वपूर्ण नहीं था। इस कारण ऐसी जातियों के अनपढ़ और अनगढ़ लोग भी मंत्री बनते रहे थे, लेकिन यादव मंत्रियों के चयन में उनकी कार्यक्षमता का ध्यान रखा जाता है। यह यादवों की कार्यकुशलता और व्यवहार कुशलता ही है कि उनके खिलाफ नफरत के माहौल में भी वे सबसे बेहतर काम करने में जुटे रहे और उनके ही कार्यों के आधार पर कुर्मी राज का मूल्यांकन हो रहा है।
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