आदमी का हर कदम अनिश्चितताओं से भरा है, संभावनाओं से भरा है, उम्मीदों से लबालब है। अगले कदम पर किस्मत कौन-सी पलटी मारेगी, कोई नहीं जानता है। बिहार से राज्यसभा के लिए 6 सदस्यों का निर्वाचन निर्विरोध हो गया है। छह सीट के लिए 6 व्यक्तियों ने नामांकन किया था और सभी राज्य सभा की देहरी तक पहुंच गये। इनका शपथग्रहण अप्रैल महीने में होगा।
छह में से 4 सदस्यों का सीधा संबंध लालू यादव के दरबार से रहा है। कांग्रेस के अखिलेश सिंह की राजनीतिक यात्रा लालू यादव के सान्निघ्य में शुरू हुई थी। वे पहले राजद के विधायक बने और फिर सांसद बने। केंद्र और राज्य सरकार में मंत्री भी रहे। अखिलेश सिंह दूसरी बार राज्यसभा के लिए चुने गये हैं। राजद के मनोज झा भी लालू दरबार की उपज हैं और दूसरी बार राज्यसभा पहुंचे हैं। भाजपा की धर्मशीला देवी और जदयू के संजय झा का संबंध भाजपा से रहा है। हालांकि संजय झा काफी पहले भाजपा को छोड़कर जदयू में शामिल हो गये थे। ये दोनों पहली बार राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं।
संजय यादव और डॉ भीम सिंह की राजनीतिक यात्रा निजी सचिव के रूप में शुरू हुई थी। ये दोनों लालू यादव के राजनीतिक बागान में सींचे गये पौधे हैं। भीम सिंह छात्र राजनीति से आये हैं और पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य के रूप में राजनीतिक ब्रेक मिला। इसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी निजी सचिव रहे। वे निजी सचिव रहते राजद के विधान परिषद चुने गये थे। इसके बाद बीच में पाला बदलकर जदयू में चले गये। वहां मंत्री भी बनाये गये। बाद में जदयू को छोड़कर भाजपा का दामन थामा और इस बार राज्यसभा पहुंच गये। संजय यादव राजद नेता तेजस्वी यादव के निजी सचिव रहे हैं। वे 2015 में तेजस्वी यादव के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद से ही उनके निजी सचिव रहे हैं। अब राज्यसभा के लिए चुने गये हैं।
बड़े नेताओं के निजी सहायकों की राजनीति में किस्मत खुलती रहती है। पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के निजी सचिव रहे यशवंत सिन्हा भी राज्यसभा सदस्य बने थे। वे विधायक और लोकसभा सांसद भी रहे थे। उन्होंने केंद्रीय मंत्री की जिम्मेवारी का भी निर्वाह किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने निजी सचिव आरसीपी सिंह को राज्यसभा का सदस्य बनाया था। वे 12 साल सांसद रहे और केंद्र में मंत्री भी रहे। सासंद ललन सिंह, पूर्व मंत्री अब्दुलबारी सिद्दीकी और पूर्व विधायक भोला यादव भी अपनी राजनीतिक यात्रा में निजी सचिव की जिम्मेवारी का निर्वाह कर चुके हैं। इस प्रसंग में एक रोचक तथ्य यह भी है कि भीम सिंह ने एमएलसी बनने के जब राबड़ी देवी के पीएस का पद छोड़ा था तो हमें अपनी जगह पर रखवाना चाहते थे, लेकिन इस संदर्भ में लालू यादव से एक मुलाकात के बाद बात आगे नहीं बढ़ पायी थी। उस समय हम हिंदुस्तान में काम कर रहे थे।
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