1 मार्च यानी शुक्रवार को बिहार विधान मंडल का बजट सत्र समाप्त हो गया। सत्र की शुरुआत 12 फरवरी को हुई थी। सत्र के दौरान बैठकों में कोई उत्साह नहीं। हर चेहरे पर सन्नाटा। न सत्ता पक्ष के चेहरे पर सत्ता में होने का भाव, न विपक्ष को विपक्ष में होने का मलाल। हर कोई अपनी जिम्मेवारियों का निर्वाह कर रहा था। 242 सदस्यीय विधान सभा में किसी व्यक्ति के चेहरे विजय का भाव था, तो वे थे नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री। वे इतना उत्साहित थे कि विश्वास मत में पक्ष में 129 वोट पड़े थे और उन्होंने उसमें आसन को जोड़कर 130 गिन लिया। जबकि आसन वोटिंग नहीं करता है। 74 सदस्यीय विधान परिषद में भी यही माहौल था। दोनों सदनों के एक-एक सदस्य की सदस्यता अलग-अगल कारणों में हाल ही में समाप्त कर दी गयी थी।
पाठकों में से कई लोग विधवा पुनर्विवाह में शामिल हुए होंगे। उस शादी में पंडित भी होता है, नाई भी होता है, मंडप भी होता है, भोज भी होता है। लेकिन पूरे उत्सव में उत्साह नहीं होता है, खुशी नहीं होती है। हर कुछ निर्वाह किया जाता है। लेकिन उसी महिला का जब दूसरी बार पुनर्विवाह (शादी तीसरी बार) हो रहा हो तो माहौल कितना औपचारिक हो जाएगा, आप कल्पना कर सकते हैं। दरअसल बिहार विधान मंडल का बजट सत्र किसी विधवा का दूसरा पुनर्विवाह यानी तीसरी शादी जैसा ही था। जदयू के विधायक दूल्हा का पक्ष का लग रहे थे। उन्हें इस बात का अहसास था कि उनके व्यवहार से सरकार पर कोई आंच नहीं आए। दूल्हा उनका ही है, इस बात की मन में गुदगुदी भी हो रही थी। भाजपा और राजद वाले कभी दूल्हा का भाई (सत्ता पक्ष) तो कभी दुल्हन का भाई (विपक्ष) की भूमिका से आजीज थे। विजय कुमार चौधरी सरकार में मंत्री हैं और सबसे भरोसेमंद बाराती। जब से मंत्री बने हैं, सदन में मुख्यमंत्री के बचाव में खड़े रहते हैं। वे कभी भाजपा या राजद शब्द अपने मुंह से नहीं निकालते हैं। वे विपक्ष में बैठी पार्टी के लिए आपलोग शब्द का इस्तेमाल करते हैं। यह समय के अनुसार राजद और भाजपा दोनों के लिए फिट बैठता है।
विधान मंडल के दोनों सदनों की लगभग 11-12 बैठक हुई। विधान सभा में स्पीकर अवध विहारी चौधरी के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान हुआ। सरकार ने सत्रहवीं विधान सभा में तीसरी बार विश्वास मत हासिल किया। अध्यक्ष के रूप में नंद किशोर यादव और उपाध्यक्ष के रूप में नरेंद्र नारायण यादव का निर्वाचन हुआ। सत्र के दौरान कई दिनों तक भारी वाहन से बैग और अटैची विधान सभा के गलियारे में पहुंचता रहा और विधायकों की कार में लदकर माननीयों के घर पहुंचता रहा। वीरेंद्र यादव न्यूज की गणना के अनुसार, हर विधायक और विधान पार्षद को कम से कम 30-30 अटैची और बैग सरकार की ओर से गिफ्ट में दिया गया। पहले इनमें से कुछ गिफ्ट पत्रकारों को भी दिये जाते थे, लेकिन इन बार उस पर रोक लगा दी गयी थी।
इस बार विधान सभा में सत्ता पक्ष में मंत्री के बैठने वाले हिस्से में वीरानी छायी रही। भाजपा और जदयू के सीएम समेत 7 मंत्री पहली लाइन में बैठ जा रहे थे। हम के संतोष मांझी और निर्दलीय सुमित सिंह दूसरी पंक्ति में कभी-कभार दिख जाते थे। विधान सभा में राजद के 5 और कांग्रेस के 2 विधायकों ने पाला बदला। कैमूर जिले के 4 विधायकों में से तीन अब तक पाला बदल चुके हैं। चैनपुर से बसपा के टिकट पर निर्वाचित जमां खान पहले ही जदयू में शामिल होकर सत्ता में पग चुके हैं। सत्र के दौरान भभुआ से राजद के विधायक भरत बिंद और मोहिनयां से संगीता कुमारी ने भी पाला बदल लिया है। तकनीकी रूप से सत्र के दौरान विपक्ष से सत्ता पक्ष में बैठे राजद या कांग्रेस के विधायकों ने किसी पार्टी का दामन नहीं थामा है। अभी तक इनका पाला बदल पार्टी विरोधी गतिविधि के दायरे में आता है, लेकिन अभी इसे दल-बदल नहीं कहा जा सकता है। अभी भी ये अपनी ही पार्टी के कायदे-कानून से बंधे हैं। माफी मांग कर वापस पार्टी के साथ जुड़े रहने का विकल्प बचा हुआ है। 2014 में जदयू के 12 विधायक राज्यसभा उपचुनाव में क्रास वोटिंग करने के बाद भी माफी मांगकर अपनी सदस्यता बरकरार रखने में सफल हुए थे। जदयू के तीन और भाजपा के दो विधायक स्पीकर अवध बिहारी चौधरी के खिलाफ लाये गये अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान के दौरान अनुपस्थित रहे थे।
बजट सत्र की तिथि दो बार बदली गयी। सत्र के दौरान कुल 12 विधेयकों को मंजूरी दी गयी। बजट सत्र का शुभारंभ राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के अभिभाषण से हुआ। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव 20 फरवरी से लगातार सदन से अनुपस्थित रहे। विपक्षी खेमे में उपस्थिति नाममात्र की दिख रही थी, जबकि सत्ता पक्ष के लोग पूरी तरह तैनात थे। पूरे बजट सत्र पर विधवा पुनर्विवाह का दर्द झलक रहा था। लगभग सभी विधायक रास्ते में डोली बदलने को लेकर आहत दिख रहे थे। लेकिन सभी पार्टी के अनुशासन से बंधे हुए थे। अब चुनाव होने वाला है। लोकसभा का चुनाव की प्रक्रिया मार्च महीने में शुरू हो जाएगी। सब कुछ सामान्य रहा तो विधान सभा चुनाव डेढ़ साल बाद होगा। लेकिन विधायकों के नाधा सरकाने का खेल बजट सत्र में शुरू हो गया है। यह सिलसिला अभी और तेज होगा। यह हर दल में होने वाला है। जब पार्टी नेतृत्व अपनी सुविधा के अनुसार जोड़ी बदलता है तो विधायक भीअपनी स्थानीय सहूलियत और जातीय समीकरण के हिसाब से खूंटा बदल रहे हैं। जनता को खूंटा बदलने का आनंद लेना चाहिए।