डॉ राममनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और कर्पूरी ठाकुरी की समाजवादी जमीन पर बदलाव की धारा निरंतर प्रवाहित हो रही है। विचारधारा की लड़ाई जाति में उलझ कर रह गयी है। चुनाव में जातियों एवं पार्टियों का समीकरण बदलता रहा है। आज बिहार जिस अंधे मोड़ पर खड़ा है, वहां कुर्सी के लिए कुछ नाजायज नहीं है। इसमें जाति, पार्टी, नीति, निष्ठा और सिद्धांत का कोई बंधन नहीं है। सब को सब कुछ अनुकूल लगता है।
2 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार में दो जनसभाएं आयोजित की गयीं। 3 मार्च को तेजस्वी यादव की जनविश्वास महारैली है। सप्ताह भर बाद चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा हो जाएगी। लोकसभा की रणभूमि उर्वर बन गयी है। हर सीट पर पार्टी और उम्मीदवार का मंथन शुरू हो गया है। सीटिंग सांसदों की गर्दन पर टिकट कटने की तलवार लटक रही है तो नये-नये दावेदार जोर आजमाईश कर रहे हैं।
राजनीतिक उठापटक और हेर-फेर के खेल में इस बार नेताओं के कद में उलटफेर हुआ है। लोकसभा चुनाव में बिहार में चेहरे की लड़ाई में नरेंद्र मोदी बनाम तेजस्वी यादव आमने-सामने होंगे। यह पहला चुनाव है, जिसमें नीतीश कुमार कोई चुनाव में मुद्दा नहीं होंगे। इस चुनाव में भाजपा वाले नरेंद्र मोदी के यशोगान करेंगे तो महागठबंधन वाले तेजस्वी यादव की नौकरी वाली बात का उठाएंगे। इस चुनाव के पहले नीतीश कुमार जब भाजपा के साथ होते थे तो भाजपा उनके नाम पर चुनाव लड़ती थी और प्रधानमंत्री के साथ मुख्यमंत्री के यशगाथा गाती थी। इस बार पूरा माहौल बदला हुआ होगा।
बिहार में भाजपा के पास नीतीश कुमार जैसे थके, हारे और मुरझाए हुए नेता हैं। उनकी अपनी विश्वसनीयता समाप्त हो गयी है। औरंगाबाद की सभा में उन्होंने प्रधानमंत्री के सामने हथियार डाल दिया। नीतीश कुमार ने कहा कि हम सारा श्रेय प्रधानमंत्री को ही देंगे। इधर, बिहार में राजद जब कार्यों का श्रेय ले रहा था तो मुख्यमंत्री इसी बात से चिढ़ जा रहे थे। सभी कामों का श्रेय अपनी झोली में डाल रहे थे और पाला बदलते ही सारा श्रेय प्रधानमंत्री पर फेंकने को तैयार हो गये हैं।
2024 की रणभूमि में राजद और भाजपा के झंडे का रंग ही दिखेगा। सहयोगी दलों का रंग इन पार्टियों के आगे ओझल रहेगा। नरेंद्र मोदी की छत्रछाया वाले एनडीए में जदयू, हम, लोजपा जैसी पार्टियां फीलर होंगी, उसी तरह तेजस्वी यादव की आभा वाले महागठबंधन में अन्य पार्टियां फीलर होंगी। बिहार में यह चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम तेजस्वी यादव की है। प्रधानमंत्री ने अपनी सभा में मुख्यमंत्री का नाम सिर्फ संबोधन में लिया, जबकि कई प्रसंग में तेजस्वी यादव को निशाने पर लेते रहे। यही नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ा खतरा है। भाजपा का कोई भी केंद्रीय नेता सिर्फ केंद्र सरकार की उपलब्धियों पर फोकस करेगा। भाजपा के सभी प्रमुख नेताओं का बिहार दौरा शुरू हो गया है। सभी केंद्र की ही बात कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने भी नीतीश कुमार की किसी उपलब्धि की चर्चा नहीं की। यह संयोग है कि न भाजपा वाले नीतीश की उपलब्धियों की बात कर रहे हैं, न विपक्ष वाले नीतीश कुमार को तवज्जो दे रहे हैं। वैसी स्थिति में नीतीश कुमार हाशिये का विषय बनकर रह जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए।