अतिपिछड़ी जातियों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व और हिस्सेदारी बिहार की राजनीति में एक बड़ा सवाल हो गया है। लोकसभा चुनाव के टिकट वितरण में अतिपिछड़ी जातियों की अपेक्षा सबके सामने है। अतिपिछड़ी जातियों के नाम पर दुकान चलाने वाली पार्टियां भी टिकट देने में कन्नी काट गयीं। यह सामाजिक और राजनीतिक संरचना के लिए खतरनाक है और इस खतरे के प्रति पार्टियों को सचेत रहना चाहिए।
नवगठित जन संवाद मंच के कन्वेनर और वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव का मानना है कि निर्वाचित पदों पर जातीय असमानता और गैरबराबरी लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है। बड़ी आबादी वाली जातियां कम आबादी वाली जातियां को आगे नहीं आने दे रही हैं। संसद या विधानमंडल में पूरी तरह मछली न्याय हो गया है। छोटी मछलियों को बड़ी मछलियां निगल जा रही हैं। यह सभ्य समाज में खतरनाक प्रवृत्ति है। वीरेंद्र यादव ने बातचीत में कहा कि बड़ी आबादी और प्रभाव वाली 6 जातियों यादव, राजपूत, भूमिहार, कोईरी, चमार और दुसाध जाति को इंडिया और एनडीए गठबंधन में 51 टिकट दिया गया है। शेष 29 उम्मीदवारों में लगभग 200 जातियों को निपटा दिया गया है। यह चिंताजनक है।
वीरेंद्र यादव ने कहा कि इस पर राजनीतिक दलों को मंथन करना चाहिए कि कम आबादी वाली जातियों का जन प्रतिननिधि सभाओं में हिस्सेदारी कैसे बढ़ायी जाए। जन संवाद मंच का मानना है कि राजनीतिक पार्टियां लोकसभा या विधान सभाओं में कम आबादी वाली जातियों को नैसर्गिक प्रतिनिधित्व देने को तैयार नहीं होंगी। लेकिन पंचायती राज और नगर निकाय में चुनाव पार्टी के आधार पर नहीं होता है। इससे जातियां का कोई सीधा राजनीतिक संबंध नहीं होता है। इसलिए लोकल बॉडी में अतिपिछड़ों का कोटा बढ़ाना चाहिए। जैसे एससी और एसटी को जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण मिल रहा है, उसी तरह लोकल बॉडी में अतिपिछड़ों को जनसंख्या के अनुपात में 36 फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए।
वीरेंद्र यादव ने कहा कि लोकल बॉडी चुनाव में अनुसूचित जाति आरक्षण को भी नये तरीके से परिभाषित करने की जरूरत है। सरकार को चाहिए कि एससी कोटे में इसी कोटे के प्रतिनिधित्व से वंचित जातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने की रणनीति बनानी चाहिए। लोकल बॉडी के अधिकतर पदों पर चमार एवं दुसाध का ही कब्जा होता है। देर-सबेर इसके खिलाफ भी आवाज उठेगी ही।
काराकाट लोकसभा से चुनाव लड़ने की तैयारी और फिर बीच में ही नहीं लड़ने के संबंध में वीरेंद्र यादव ने कहा कि हमने कोशिश की थी कि जनसहयोग से चुनाव लड़ा जाना चाहिए। इसमें शुभेच्छुओं की मदद ली जानी चाहिए। इसके साथ कुछ मुद्दों की बात भी करनी थी। तैयारी की शुरुआत में कुछ शुभेच्छुओं ने सहयोग किया, लेकिन इसे हम विस्तार नहीं दे पाये। चुनाव के लिए पटना, दाउदनगर, बिक्रमगंज, सासाराम करने में ही इतना उलझ गये कि तैयारी के बीच में ही हिम्मत टूट गयी। लेकिन इस कोशिश में हमने कुछ मुद्दों की तलाश की, जिसपर लगातार काम जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि चुनाव में विमर्श के लिए पांच मुद्दे तय किये थे। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा है कि यादव जाति को ओबीसी के दायरे से बाहर निकाला जाये। दूसरा मुद्दा है कि ईबीसी को लोकल बॉडी के चुनाव में 36 फीसदी आरक्षण दिया जाए। तीसरा मुद्दा है कि जाति आधारित गणना की प्रखंडवार और जिलावार रिपोर्ट जारी की जाये। इसके साथ ही चुनाव के दौरान पोलिंग एजेंट और नोटा जैसी व्यवस्था समाप्त करना शामिल है।
वीरेंद्र यादव ने कहा कि जन संवाद मंच के माध्यम से इन मुद्दों पर लगतार जनमत तैयार किया जाएगा। इसके लिए जिलों में नेटवर्क बढ़ाया जाएगा। अतिपिछड़ा पंचायत प्रतिनिधियों की डायरेक्टरी बनायी जाएगी। इन मुद्दों पर विमर्श लगातार जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि चुनावी प्रक्रिया के माध्यम से मुद्दों की बात की जा सकती है, लेकिन ऐसे मुद्दों पर लगातार चर्चा जरूरी है। इसके लिए सामाजिक संगठनों की बड़ी भूमिका होगी। जन संवाद मंच विभिन्न स्थानीय संगठनों से मिलकर काम करेगा और मुद्दों की लड़ाई को आगे बढ़ाएगा।