केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में गठित गठबंधन सरकार में बिहार के आठ सांसदों को शामिल किया है। इसमें 6 लोकसभा के और 2 राज्यसभा के सदस्य हैं। सतीश दूबे और रामनाथ ठाकुर राज्यसभा के सदस्य हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा के कमजोर पड़ने का साफ असर मंत्रिमंडल में पार्टियों की हिस्सेदारी को देखकर लग रहा है। 2019 में 16 सदस्य के बावजूद जदयू के एकमात्र व्यक्ति को मंत्री बनाया जा रहा था, लेकिन 2024 में 12 सदस्य होने के बाद भी 2 लोगों को मंत्री बनाया गया। इसके साथ ही हम के जीतनराम मांझी और लोजपारा के चिराग पासवान को मंत्रिमंडल में जगह दी गयी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनाव के दौरान लालू यादव के परिवारवाद पर गला फाड़ रहे थे, लेकिन जब मंत्रिमंडल में किसी को शामिल करने का मौका मिला तो पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के पुत्र रामनाथ ठाकुर को आगे बढ़ा दिया।
मंत्रिमंडल में जातीय हिस्सेदारी की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजपूतों का बैंड बजा दिया है। बिहार से एक जाति के रूप में एनडीए में सबसे ज्यादा 5 सांसद राजपूत जाति के हैं, जिसमें तीन अकेले भाजपा के हैं। इस जाति को सरकार में कोई जगह नहीं मिली। इसके विपरीत तीन सदस्यों वाली भूमिहार जाति के दो सदस्य मंत्रिमंडल में शामिल किये गये। दोनों ही जाति भाजपा के वफादार वोटर हैं, लेकिन मलाई बांटने की बारी आयी तो भूमिहार की थाली लबाबल हो गयी और राजपूत देखता रह गया। भूमिहार जाति के ललन सिंह जदयू और गिरिराज सिंह भाजपा के सांसद हैं। हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और लोजपारा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को सरकार में जगह मिली है। ये दोनों अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट से निर्वाचित हुए हैं। जदयू कोटे से मंत्री बने ललन सिंह भी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं।
अतिपिछड़ी जाति के दो सदस्यों को भी मंत्रिमंडल में जगह दी गयी है। रामनाथ ठाकुर राज्यसभा सदस्य हैं और जदयू कोटे में उन्हें जगह दी गयी है। वे नाई जाति से आते हैं। इसके साथ ही भाजपा कोटे से राजभूषण चौधरी को जगह मिली है, जो मल्लाह जाति से आते हैं। अन्य दो मंत्रियों में भाजपा के नित्यांनद राय यादव और सतीश दूबे ब्राह्मण जाति से आते हैं।
नये मंत्रिमंडल में भूमिहारों की पौ बारह रही। उसके दोनों मंत्रियों को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इसमें सबसे ज्यादा नुकसान में यादव जाति रही है। इसके एकमात्र मंत्री नित्यानंद राय को फिर राज्यमंत्री में धकेल दिया गया। वे पिछली सरकार में भी राज्यमंत्री ही थे। आठ से दो मंत्रियों को फिर से रिपीट किया गया है। बाकी सभी केंद्र सरकार में पहली बार मंत्री बने हैं। मंत्रियों में जीतनराम मांझी और राजभूषण चौधरी पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए हैं। पार्टीगत हैसियत का आकलन करें तो भाजपा के चार सदस्य हैं, जबकि जदयू के दो और हम तथा लोजपारा के एक सदस्य को मंत्रिमंडल में जगह मिली है।
बिहार के परिप्रेक्ष्य में कहा जा सकता है कि हर जाति वर्ग को संतुलित करने का प्रयास किया गया है। लेकिन इस कोशिश में राजपूतों को हाशिए पर धकेल दिया गया है। इसकी वजह समझ से परे है। जिस जाति ने पूरी निष्ठा के साथ भाजपा को वोट दिया और पूरी ताकत के साथ खड़ी रही, उसे ही उपेक्षा की मार झेलनी पड़ी। कायस्थ जाति को भी अनदेखा किया गया। उसके भी किसी सदस्य को मंत्री नहीं बनाया गया, लेकिन यह जाति पूरी ईमानदारी से भाजपा के साथ खड़ी रही है। पिछड़ी जातियों में कोईरी और बनिया को भी जगह नहीं मिली। हालांकि भाजपा ने किसी कोईरी को टिकट नहीं दिया था, जबकि लोकसभा के लिए तीसरी बार निर्वाचित बनिया संजय जायसवाल बुलावे का इंतजार करते रह गये। इस चुनाव में कोईरी जाति की निष्ठा को लेकर कई सवाल उठाए गये, पर बनिया एकमुश्त भाजपा के पक्ष में खड़े रहे। इसका पुरस्कार उन्हें नहीं मिला।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में भौगोलिक संतुलन का ख्याल नहीं रखा गया। बेगूसराय, मुंगेर, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर जिलों की भौगोलिक बनावट आपस में जुड़ी हुई और इसी क्षेत्र के 6 मंत्रियों को जगह मिली है। जीतनराम मांझी गया और सतीश दूबे चंपारण के हैं।
कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली नयी सरकार में बिहार को सम्मानजनक हिस्सेदारी मिली है। नीतीश कुमार भी पिछली बार की तुलना में ज्यादा फायदे में रहे हैं। इसका लाभ विधान सभा चुनाव में भी मिलेगा। लेकिन नयी राजनीतिक परिस्थितियों में भूमिहार जाति एक मजबूत ताकत के रूप में उभर रही है। 2020 तक सत्ता समीकरण के हिसाब से हाशिए पर रहने वाली जाति केंद्रीय भूमिका में आ गयी है। इस जाति के केंद्र सरकार में भी दो मंत्री हैं और राज्य सरकार में भी दो मंत्री हैं। इसमें उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा भी शामिल हैं। दूसरे विजय कुमार चौधरी नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद मंत्री हैं और वे किसी भी उपमुख्यमंत्री से ज्यादा ताकतवर हैं।