लोकसभा चुनाव का परिणाम महागठबंधन खासकर राजद में भारी बदलाव की मांग करता है। यह रिजल्ट संगठनात्मक और कार्यशैली के स्तर पर भी परिवर्तन की जरूरत बता रहा है। उत्तर बिहार की लोकसभा की 26 सीटों के तहत 157 विधान सभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से 155 विधान सभा सीट गंगा के उत्तरी हिस्से में हैं, जबकि मात्र बिहपुर और गोपालपुर गंगा के दक्षिणी हिस्से में पड़ते हैं। ये दोनों भागलपुर लोकसभा सीट के हिस्से हैं।
वीरेंद्र यादव न्यूज और वीरेंद्र यादव फाउंडेशन ट्रस्ट ने उत्तर बिहार की 26 लोकसभा सीटों में विधान सभावार हार-जीत का विश्लेषण किया। इस विश्लेषण में यह बात उभर कर आयी कि पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार हार-जीत का मार्जिन भले कम हो गया हो, लेकिन पराजय की पीड़ा कम नहीं हुई है। उत्तर बिहार में एकमात्र कटिहार ही नयी सीट महागठबंधन के हिस्से आयी है, जबकि किशनगंज में पिछली बार भी कांग्रेस ने ही जीत दर्ज की थी। निर्दलीय पप्पू यादव ने जरूर पूर्णिया सीट जीत कर जदयू के दर्प में दरार डाल दिया है।
लोकसभा चुनाव में सीवान के विधायक अवध बिहारी चौधरी, सिंहेश्वर के विधायक चंद्रहास चौपाल, उजियारपुर के विधायक आलोक कुमार मेहता और दरभंगा ग्रामीण के विधायक ललित कुमार यादव को राजद ने अपना उम्मीदवार बनाया था। ये चारों अपने-अपने विधान सभा क्षेत्र में पिछड़ गये हैं। चुनाव में चारों को मुंह की खानी पड़ी। सबसे बड़ी बात है कि राजद के पूर्व मंत्री तेज प्रताप यादव के विधान सभा क्षेत्र हसनपुर में भी इंडिया को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के राघोपुर विधान सभा क्षेत्र में राजद को जरूर बढ़त मिली है। हालांकि महागठबंधन के टिकट पर भागलपुर से चुनाव लड़ रहे अजीत शर्मा ने अपनी विधान सभा सीट भागलपुर में बढ़त बना ली है, हालांकि लोकसभा की अन्य विधान सभा सीटों पर पराजय झेलनी पड़ी है।
महागठबंधन के उम्मीदवारों को उत्तर बिहार में सिर्फ 19 विधान सीटो पर बढ़त मिली है। विधान सभा की हरसिद्धि, ढाका, परिहार, अररिया, जोकीहाट, किशनगंज, अमौर, बायसी, बलरामपुर, प्राणपुर और मनिहारी में इंडिया गठबंधन को बढ़त मिली है। बढ़त का यह सिलसिला मधेपुरा, गरखा, परसा, सोनपुर, राघोपुर, विभूतिपुर, बछवाड़ा और भागलपुर तक कायम रहा है।
उत्तर बिहार में महागठबंध की पराजय कोई बड़ा राजनीतिक हादसा नहीं है। 2008 में परिसीमन के बाद से हुए चुनाव में उत्तर बिहार में राजद हाशिए का विषय बन गया है। इसकी बड़ी वजह है कि इन इलाकों में यादव और मुसलमान के खिलाफ गोलबंदी होती है और इसका सीधा लाभ राजद विरोधी दलों को मिलता है। दरअसल यहीं से राजद की कार्यशैली में बदलाव की जरूरत महसूस होती है। यह बात तेजस्वी यादव को खुद समझना चाहिए।