राज्यसभा की दो सीटों के लिए उपचुनाव होना है। मीसा भारती और विवेक ठाकुर के लोकसभा के लिए निर्वाचित होने के बाद दोनों सीट रिक्त हो गयी है। मीसा भारती का कार्यकाल 2028 तक था, जबकि विवेक ठाकुर का कार्यकाल 2026 तक था। मतलब यह है कि मीसा भारती की सीट पर चुनाव 4 साल के लिए होगा और विवेक ठाकुर की सीट पर उपचुनाव 2 साल के लिए होगा।
राजनीतिक गलियारे में माना जा रहा है कि मीसा भारती की सीट पर जदयू उम्मीदवार देगा और विवेक ठाकुर की सीट पर भाजपा उम्मीदवार देगी। नाम पर रार तो उम्मीदवार घोषणा होने के दिन तक चलेगा। आज की तारीख में 14 सदस्यों में 5 राजद के, 4 जदयू के, भाजपा के 4 और 1 कांग्रेस के सदस्य राज्यसभा में हैं। राज्यसभा में बिहार की सबसे बड़ी पार्टी राजद ही है।
rajya sabha upchunav
राज्यसभा का उपचुनाव हम जदयू उम्मीदवार के खिलाफ निर्दलीय लड़ना चाहते हैं। जदयू या भाजपा कोई हमारे पक्ष में नहीं होगा। महागठबंधन के दल सपोर्ट करें तो उम्मीदवार बना जा सकता है। राज्य सभा में नामांकन के लिए 10 प्रस्तावक चाहिए। आज की तारीख में राजद के 77, कांग्रेस के 19 और माले के 11 सदस्य हैं। इनमें से कोई एक दल समर्थन के लिए आगे आता है तो नामांकन किया जा सकता है। जितने के लिए कम से कम 120 वोट चाहिए। विधान सभा में अस्तित्व में मौजूद किसी एक पार्टी के पास इतना वोट नहीं है। सबको बैसाखी की जरूरत है। हम वोट की यह संख्या आज की तारीख में बता रहे हैं। रुपौली उपचुनाव के बाद सदस्यों की संख्या 239 हो जाएगी। इसके बावजूद 4 सीट खाली रहेंगे। क्योंकि माना जा रहा है कि राज्यसभा की दो और विधान सभा की 4 सीटों के लिए लगभग एक समय उपचुनाव कराया जाएगा। ये सभी 6 लोग लोकसभा के लिए चुन लिये गये हैं। विधायक रहे जीतनराम मांझी, सुधाकर सिंह, सुरेंद्र यादव और सुदामा प्रसाद साह अब लोकसभा सदस्य हैं। इनकी सीटों पर भी उपचुनाव होगा।
हमने शुरू में आशंका जतायी है कि तेजस्वी यादव हमारे नाम पर समर्थन नहीं करेंगे। इसी के साथ यह भी स्पष्ट है कि तेजस्वी से दुश्मनी लेकर कांग्रेस और माले भी आगे नहीं आएंगे। अब सवाल यह है कि तेजस्वी यादव हमें सपोर्ट क्यों नहीं करेंगे। तेजस्वी यादव के राजनीतिक चरित्र में लड़ने की कूबत नहीं है। आज तक उन्होंने जो भी हासिल किया है, वह राजनीतिक परिस्थितियों के कारण हासिल किया है। ठीक उसी तरह जैसे बबूल के पेड़ के नीचे आम मिल जाता है।
तेजस्वी यादव कुछ हद तक भाजपा के खिलाफ आक्रामक हो सकते हैं, लेकिन नीतीश कुमार के खिलाफ कभी नहीं हो सकते हैं। उन्हें पता है कि सत्ता की मलाई नीतीश के चरणों से होकर बहती है। इसलिए उनकी नजर नीतीश कुमार की गर्दन के बजाये चरणों में रहती है। पिछले 10 वर्षों से तेजस्वी यादव सार्वजनिक और संसदीय जीवन में हैं। एक उदाहरण नहीं मिलेगा, जब तेजस्वी यादव नीतीश कुमार से लड़ते हुए दिख रहे हों। तेजस्वी यादव का भाषण नेता प्रतिपक्ष के रूप से ध्यान से सुनने पर पता चलेगा कि वे सरकार को लतिया नहीं रहे हैं, मुख्यमंत्री से बतिया रहे हैं। उनके भाषण में प्रतिपक्ष का तेवर नहीं होता है, बल्कि सत्ता में आने का एक लेवल तय कर रहे होते हैं।
बिहार का दुर्भाग्य है कि यहां प्रतिपक्ष कभी नहीं रहा है। विपक्ष की ओर बैठी पार्टी सत्ता में पहुंचने के इंतजार में समय गुजारती है। नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी से उठकर व्यक्ति सीधे उपमुख्यमंत्री बनता है। तेजस्वी यादव, सम्राट चौधरी, विजय सिन्हा सब इसके उदाहरण हैं। सुबह में मुख्यमंत्री की गर्दन मरोड़ने का स्वांग रचने वाला नेता प्रतिपक्ष शाम होते ही मुख्यमंत्री के चरणों में लोटने लगता है। यही राजनीति का यथार्थ है।
हम मूल बात पर लौटते हैं। हम राज्यसभा का उपचुनाव लड़ना चाहते हैं। अभी तिथि घोषित नहीं हुई है। घोषणा के बाद एक बार जरूर तेजस्वी यादव से मिलकर अपनी बात रखेंगे। बातचीत का परिणाम भी पता है। हमारा मानना है कि हर कोशिश परिणति तक पहुंचने के लिए नहीं होती है।