लोकसभा चुनाव में कोईरी को एक भी टिकट नहीं देनी वाली भाजपा विधान सभा चुनाव में कोईरियों को टिकट से लाद देगी। वजह साफ है कि यादव के बाद सबसे बड़ी आबादी वाली जाति कोईरी एक मजबूत राजनीतिक ताकत है। इसके पास वोट भी है और पोलिंग कैपिसिटी भी। यह जाति अपनी जाति के उम्मीदवार के प्रति कट्टर होती है। वह अपनी जाति को वोट देती है।

पिछले विधान सभा चुनाव में कोईरी जाति के मात्र 16 विधायक जीत पाये थे। लोकसभा चुनाव में भाजपा कोटे से रालोमो के उपेंद्र कुशवाहा की काराकाट में हार को खुद भाजपा नहीं पचा पा रही थी। इसलिए उपेंद्र कुशवाहा को राज्यसभा में भेज कर पराजय को ढकने का प्रयास किया। विधान सभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा अलग से अपनी पार्टी के कोटे के टिकट के दावेदार होंगे। लेकिन भाजपा ने पहले ही उनके मुंह में सत्ता की मलाई भर कर अलग तरह का दबाव बना लिया है। खैर हम भाजपा की बात कर रहे हैं।
2020 के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने 21 टिकट यादव को दिये थे। उसमें से सात निर्वाचित हुए थे। इस बार भाजपा अपनी रणनीति बदल रही है। वह यादव कोटे वाला टिकट कोईरी का शिफ्ट करेगी। भाजपा मानती है कि यादव का वोट मिलता ही नहीं है तो टिकट क्यों देना है। इस कारण पिछले साल जब भाजपा सत्ता में आयी तो यादव को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया। बीस सूत्री कमेटी के गठन में भी भाजपा ने यादवों के हिस्से में झुनझुना थमा दिया।
विधान सभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री की दौड़ में भाजपा के सबसे प्रबल उम्मीदवार सम्राट चौधरी होंगे। कम से कम कोईरी जाति को यह भरोसा है कि अगला मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ही होंगे। जाति स्तर पर इसी बात का प्रचार किया जा रहा है। कोईरी वोटों को बिखराव से बचाने के लिए यह धारणा जोड़ने का काम कर रही है। इसके लिए जरूरी है कि कोईरी जाति को अधिक से अधिक टिकट दिया जाये और इस जिम्मेवारी का निर्वाह सम्राट चौधरी को ही करना होगा।
लेकिन वोटों के गणित में इस जाति की ट्रेजडी अलग तरह की है। यह बड़ी आबादी है, लेकिन एक विधान सभा क्षेत्र में सघन बसावट हो, ऐसी स्थिति बहुत कम है। वीरेंद्र यादव फाउंडेशन और वीरेंद्र यादव न्यूज के हाल ही में किये गये वोटरों के जातीय सर्वे के अनुसार, विधान सभा की मात्र दो सीटों पर कोईरी जाति के वोटरों की सबसे अधिक संख्या है। इसमें पहले स्थान पर सासाराम है और दूसरे स्थान पर विभूतिपुर। तीसरी किसी सीट पर कोईरी सबसे बड़ा वोटर समूह नहीं हैं। बिहार की सभी विधान सभा सीटों पर 10 प्रमुख जातियों के वोटरों की संख्या वीरेंद्र यादव फाउंडेशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक ‘राजनीति की जाति पार्ट 2’ में प्रकाशित है। इस पुस्तक की कीमत मात्र पचपन सौ (5500) रुपये हैं। यह पुस्तक वीरेंद्र यादव न्यूज के पिछले 5 सालों के अंकों का संकलन है और अंक चुनाव की लिहाज से संग्रहणीय है।
पिछले लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार, उपेंद्र कुशवाहा और सम्राट चौधरी मिलकर भी शाहाबाद और मगध में कोईरी वोटों के बिखराव को नहीं रोक पाये थे। कोईरियों का भरोसा हासिल नहीं कर पाये थे। विधान सभा चुनाव में इस स्थिति से बचने के लिए इस बार भाजपा राजपूत से ज्यादा कोईरी जाति को टिकट देने की योजना बना रही है। सवर्ण जातियों को भाजपा अपना बंधक वोटर मानती है। टिकट नहीं मिलेगा तो भी वोट भाजप को ही देगा। क्योंकि सवर्ण जातियों को यादवों से चिढ़ है। सवर्णों की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक सत्ता को सबसे बड़ी चुनौती यादव से मिली है। उनके राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक आधिपत्य को यादवों ने ही दरकाया है। यही कारण है कि यादव के विरोध में सवर्ण भाजपा को वोट देते हैं। कोईरियों को भरोसा में लिये बिना मगध और शाहाबाद में नीतीश-मोदी का कुनबा लालू यादव कुनबे का मुकाबला नहीं कर सकता है।
भाजपा आगामी चुनाव में यादवों को टिकट देने से परहेज करेगी। वह यादवों को 10-12 टिकट में निपटा देगी, जबकि कोईरियों को 24-25 टिकट दे सकती है। भाजपा में यादवों की कब्र पर भी कोईयिों की फसल लहलहाएगी। इसकी आंच में और कितनी जातियां आएंगी, इसका अभी इंतजार करना होगा।