बिहार में एक जाति है भूमिहार। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कुर्मी बैठे या गोवार, लेकिन सिस्टम की धड़कन भूमिहार के हाथ में ही रहती है। आजादी के बाद लंबे समय तक भूमिहार डा. श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री रहे थे। उनके बाद किसी भूमिहार को मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला। यह भी कह सकते हैं कि उनके कद का कोई और भूमिहार नेता नहीं था। हालांकि आगामी विधान सभा चुनाव के बाद भूमिहार के भाग्योदय की संभावना दिख रही है।

भूमिहार के पास शिक्षा भी रही है, जमीन भी ही रही है और प्रशासनिक पहुंच और पकड़ भी रही है। इसका लाभ इस जाति को मिलता रहा है। समाजवादी आंदोलन के उभार में भी भूमिहार नेताओं की भूमिका महत्वपूर्ण थी। लेकिन समाजवाद को ताकत यादवों से मिल रही थी। समाजवादी आंदोलन की रीढ़ यादव ही थे। एक भूमिहार नेता थे अंबिका सिंह। उन्होंने हमसे बातचीत में कहा था कि हम अहीरों का भात खाकर समाजवाद की लड़ाई लड़ते रहे हैं। उनका कार्यक्षेत्र मुख्यत: कोसी का इलाका ही था।
हम भूमिहार की बात कर रहे थे। यह जाति हर पार्टी में पायी जाती है। यह अपनी जनसंख्या से पांच गुना ज्यादा विधायक और सांसद जिताते रही है। वीरेंद्र यादव फाउंडेशन और वीरेंद्र यादव न्यूज के हालिया वोटर सर्वे में यह बात उभरकर सामने आयी है कि मात्र 15 विधान सभा क्षेत्रों में भूमिहार सबसे बड़ा वोटर समूह है। इन विधान सभा क्षेत्रों में कांटी, कल्याणपुर, चेरियाबरियारपुर, बछवाड़ा, तेघड़ा, मटिहानी, बिहपुर, लखीसराय, बरबीघा, मोकामा, बिक्रम, हिसुआ, वारसलीगंज, घोसी और कुर्था शामिल हैं। बिहार की सभी विधान सभा सीटों पर प्रमुख जातियों के वोटरों की संख्या वीरेंद्र यादव फाउंडेशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक ‘राजनीति की जाति पार्ट 2’ में प्रकाशित है। इस पुस्तक की कीमत मात्र पचपन सौ (5500) रुपये हैं। यह पुस्तक वीरेंद्र यादव न्यूज के पिछले 5 सालों के अंकों का संकलन है और हर अंक चुनाव के लिहाज से संग्रहणीय है।
भूमिहार जाति किसी पार्टी के प्रति प्रतिबद्ध नहीं है। यह सिर्फ यादव जाति और यादव सत्ता के खिलाफ है। बिहार में यादवों के खिलाफ पार्टीगत लड़ाई सिर्फ भाजपा लड़ रही है। इसलिए भूमिहार भाजपा के साथ हैं। कुर्मी नीतीश कुमार भी भूमिहारों के गले से नीचे नहीं उतरते हैं, लेकिन यादवों को सत्ता से दूर रखने के लिए कुर्मी की पालकी ढोने को अपना सौभाग्य मानते हैं। आज नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद नेता ललन सिंह और विजय चौधरी हैं। दोनों भूमिहार हैं। सबसे लंबे समय तक नीतीश के साथ रहने वाले और प्रतिबद्ध बिजेंद्र प्रसाद यादव भी नीतीश के भरोसेमंद नहीं हैं। वर्तमान सरकार में तीन मंत्री भूमिहार हैं और तीनों महत्वपूर्ण और मालदार विभाग के मंत्री हैं।
विधान सभा चुनाव में पार्टी विशेष के पक्ष में हवा बनाने में भूमिहार जाति की भूमिका हवाबाज की होती है। राजद ने इस जाति के लिए ए टू जेड का फार्मूला लागू किया, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। उल्टे खामियाजा भी उठाना पड़ रहा है।