बिहार सरकार ने 2023 में जातीय सर्वे करवाया था। यह सर्वे नहीं, बल्कि जाति गणना थी। प्रदेश में हर व्यक्ति की जाति की गिनती की गयी थी। इसके बाद सरकार ने जाति सर्वे की रिपोर्ट विधान सभा में रखी थी। इस पर रार भी हुआ और राजनीति भी हुई। यह रार अभी थमा नहीं है। केंद्र सरकार द्वारा देशभर में जनगणना के साथ जाति गणना की घोषणा के बाद इस पर रार और राजनीतिक दोनों बढ़ गयी है। अपने-अपने दावे किये जा रहे हैं। इसका श्रेय लेने की होड़ लगी है। केंद्र सरकार के निर्णय का राजनीतिक असर पर भी मंथन जारी है।

बिहार की राजनीति में जाति की भूमिका और प्रभाव को देखते हुए वीरेंद्र यादव न्यूज ने अपनी खबरों का केंद्रीय विषय जाति को बनाया था। इस पत्रिका का पूरा चरित्र जाति आधारित सूचनाओं पर निर्भर है। इसीलिए हम पत्रिका के प्रकाशन के समय से ही जाति की संख्या और प्रतिनिधित्व पर खबर देते रहे हैं। बिहार में जाति आधारित गणना के बाद हमने पहली बार और व्यापक स्तर पर सभी विधान सभा क्षेत्रों में 10 प्रमुख जातियों के वोटर की संख्या का प्रकाशन अपने इस चुनाव विशेषांक में किया है। यह डाटा बिहार में चुनाव के मद्देनजर महत्वपूर्ण होने के साथ सामाजिक अध्ययन के लिए भी प्राथमिक स्रोत साबित होगा। पत्रिका का हर डाटा प्राथमिक स्रोत पर आधारित है। हमारे पास सभी जातियों का विधानसभावार डाटा उपलब्ध है, लेकिन तकनीकी कारणों से प्रकाशन संभव नहीं है। डाटा का फार्मेट भी 10 जातियों की सीमा में बांध देता है। लेकिन खबरों में हम अन्य जातियों की संख्या भी बताते रहेंगे।

इस पत्रिका में प्रकाशित डाटा बता रहे हैं कि लगभग दो सौ सीटों पर सबसे बड़े वोटर वाली जाति यादव या मुसलमान हैं। जनसंख्या में हिस्सेदारी के हिसाब से हर सीट पर इन दो जातियों के वोटरों की संख्या ज्यादा है, लेकिन लगभग तीन दर्जन सीटों पर अन्य जातियों के वोटर भी सबसे बड़ी संख्या में हैं। जैसे नालंदा में कुर्मी जाति के वोटरों की बहुलता है तो नवादा, शेखपुरा और लखीसराय जिले की कुछ विधान सभा सीटों पर भूमिहार वोटर बड़ी आबादी में है, जबकि कैमूर जिले की सभी विधान सभा सीटों पर चमार जाति सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत है। सारण और औरंगाबाद के इलाके में राजपूत भी प्रभावी संख्या में हैं।
इस विशेषांक में प्रकाशित डाटा के अनुसार, कांटी, कल्याणपुर, चेरियाबरियारपुर, बछवाड़ा, तेघड़ा, मटिहानी, बिहपुर, लखीसराय, बरबीघा, मोकामा, बिक्रम, कुर्था, घोसी, हिसुआ और वारसलीगंज में भूमिहार वोटरों की संख्या अन्य जातियों से अधिक है। राजपूतों की बात करें तो बैकुंठपुर, मांझी, बनियापुर, तरैया, छपरा, नवीनगर, कुटुंबा और औरंगाबाद में राजपूत वोटरों की संख्या सबसे अधिक है। नालंदा जिले में राजगीर को छोड़कर अन्य सभी छह विधान सभा सीटों पर कुर्मी वोटरों की संख्या सबसे अधिक है। सिर्फ बेनीपुर और बक्सर विधान सभा क्षेत्र में ब्राह्मण वोटरों की सबसे बड़ी आबादी है। भभुआ जिले की सभी चार विधान सभा सीटों पर चमार जाति के वोटरों की संख्या सबसे अधिक है। कोईरी की बात करें तो मात्र चार विधान सभा सीट उजियारपुर, विभूतिपुर, चेनारी और सासाराम में इस जाति के वोटों की संख्या सबसे अधिक है।
हमने डाटा संकलन और उसके तुलनात्मक अध्ययन के दौरान इस बात पर सबसे अधिक बल दिया है कि सूचनाएं प्राथमिक स्तर पर संकलित की जाएं। यह बड़ी चुनौतीपूर्ण कार्य था। विधान सभा क्षेत्र में वोटरों की जातीय संख्या को लेकर हर व्यक्ति की अपनी-अपनी अवधारणा है। इस अवधारणा को गढ़ने में व्यक्ति विशेष की जाति की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। उसी के अनुरूप लोग अपनी जाति की संख्या का आकलन कर लेते हैं। हमने अपने पिछले अध्ययन के दौरान पाया कि हर व्यक्ति को पुस्तक में संकलित डाटा में अपनी जाति की संख्या कम लगती है, बाकी अन्य जातियों की संख्या से उन्हें कोई शिकायत नहीं रही है। लेकिन हमने अवधारणा और शिकायतों से अलग तथ्यों के आधार पर जाति की संख्या का सर्वे किया है। इससे आप सहमत हैं या असहमत, यह पाठकों की अपनी स्वेच्छा है। हम जो तथ्य आपको दे रहे हैं, वह हमारे मानदंडों पर पूरी तरह खरा है। हम अपने तथ्यों और आकंड़ों के साथ हैं।
हमने इन तथ्यों को अपनी नयी पुस्तक राजनीति की जाति पार्ट- 2 में संकलित किया है। इस पुस्तक में सभी सीटों पर 10 जातियों के वोटरों की संख्या बतायी गयी है। हालांकि अलग-अगल इलाकों में अलग-अलग जातियों का भी प्रभाव है और उनकी बड़ी आबादी है। जैसे मगध में कहार और मुसहर, भागलपुर में गंगोता, कोसी में धानुक और केवट आदि जाति हैं। इनका डाटा हम प्रकाशित नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि इन जातियों का डाटा भी हमारे डिजिटल लाइब्रेरी में उपलब्ध है। लेकिन जिस फार्मेट में डाटा प्रकाशित कर रहे हैं, उसमें इन आंकड़ों का इस्तेमाल संभव नहीं हो सका है। फिर इन जातियों का राज्य व्यापी प्रभाव भी नहीं है।
‘राजनीति की जाति पार्ट -2’ की कीमत मात्र साढ़े पांच हजार (5500) रुपये हैं। इसमें किसी प्रकार की कोई छूट देय नहीं है। इस पुस्तक में 2020 के विधान सभा चुनाव के लिए उम्मीदवार के नाम, उनकी जाति के साथ 2020 के चुनाव परिणाम को भी शामिल किया गया है। 2020 के विधायकों का जातिवार विवरण के साथ ही 2015 और 2020 में जातीय विधायकों का तुलनात्मक डाटा भी है। इस पुस्तक में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव तथा नीतीश कुमार और विजय सिन्हा के बीच झड़प का भी आंखों देखा हाल प्रकाशित है। 2022 के जातीय सर्वेक्षण पर भी विस्तृत रिपोर्ट है। यह पुस्तक 2020 से 2025 के बीच की राजनीतिक घटनाओं का दस्तावेज है। खासकर चुनावी राजनीति के लिए यह पुस्तक काफी उपयोगी है। इस पुस्तक का हर पन्ना दस्तावेज है, जिसे पढ़कर आप बिहार की राजनीतिक जटिलताओं को आसानी से समझ सकते हैं। पुस्तक में उपलब्ध सामग्री के लिए पुस्तक की कीमत काफी कम है। हमारा यह अंक और प्रकाशित पुस्तक बिहार को समझने का सबसे बड़ा आधार है। बिहार की जातीय राजनीति और जाति सरोकार को समझने के लिए पुस्तक पढ़ना बहुत जरूरी है।