बिहार में वोट के बाजार में यादव जाति भले महाबली हो, लेकिन सबसे अधिक जीत दर्ज करने वाली जाति है राजपूत। इस मामले में यादव दूसरे स्थान पर ठहरता है। तीसरे स्थान पर भमिहार है। पिछले विधान सभा चुनाव में जातियों को मिले टिकट और जीत दर्ज करने का अनुपात बताता है कि मुसलमान काफी पिछड़ जाते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव की पुस्तक ‘राजनीति की जाति पार्ट 2’ में दर्ज आंकड़े इस बात के पुख्ता आधार हैं कि जीतने की सबसे ज्यादा संभावना राजपूत जाति में है। यही कारण है कि टिकट के अनुपात में वह ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करती है। वीरेंद्र यादव फाउंडेशन की ओर से प्रकाशित पुस्तक ‘राजनीति की जाति पार्ट -2’ की कीमत मात्र पचपन सौ (5500) रुपये हैं। यह पुस्तक वीरेंद्र यादव न्यूज के पिछले 5 सालों के अंकों का संकलन है और हर अंक चुनाव की लिहाज से संग्रहणीय है।
इस पुस्तक के अनुसार, पिछले चुनाव में महागठबंधन ने 70 यादव और एनडीए में 36 यादव उम्मीदवारों को टिकट दिया था। दोनों खेमों को मिलाकर 106 टिकट यादवों की झोली में गयी थी। इनमें से 52 यादव विधान सभा में पहुंचे थे। प्रतिशत में यह जीत 49.05 प्रतिशत ठहरती है। हम राजपूतों की बात करें तो एनडीए में 29 और महागठबंधन ने 18 राजपूतों को टिकट दिया था। दोनों गठबंधनों के 47 उम्मीदवारों में से 27 राजपूतों ने जीत दर्ज की थी। प्रतिशत में यह जीत 57 प्रतिशत ठहरती है। इसके अलावा निर्दलीय सुमित कुमार सिंह ने भी जीत दर्ज की थी। इस कारण विधान सभा में राजपूत विधायकों को संख्या 28 पहुंच गयी है। बाद में रुपौली उपचुनाव में शंकर सिंह ने भी दर्ज की। फिलहाल विधान सभा में 29 विधायक हैं।
भूमिहारों की बात करें तो पिछले विधान सभा चुनाव में एनडीए ने 27 और महागठबंधन ने 14 भूमिहारों को टिकट दिया था। दोनों गठबंधनों ने 41 भूमिहारों को टिकट दिया था। इसमें से 20 विधान सभा पहुंचे थे। यह प्रतिशत में 48.78 प्रतिशत ठहरती है। इसके अलावा राजकुमार सिंह लोजपा के टिकट पर निवार्चित हुए थे, जो बाद में जदयू में शामिल हो गये थे। इस प्रकार विधान सभा भूमिहार विधायकों की संख्या 21 पहुंच गयी है।
मुसलमानों की बात करें तो एनडीए ने 11 और महागठबंधन ने 33 मुसलमानों को टिकट दिया था। इनकी कुल संख्या 44 थी, जिसमें से 18 निर्वाचित हुए थे। प्रतिशत में यह जीत 41 प्रतिशत ठहरती है। इसके अलावा बसपा के टिकट पर जमां खान निर्वाचित हुए थे, जो बाद में जदयू में चले गये थे। इस कारण विधान सभा में मुसलमान विधायकों की संख्या 19 है।
यह आंकड़ा महागठबंधन और एनडीए के संयुक्त परिणामों पर आधारित है। इसे हम अलग-अलग देखें तो राजपूत और भूमिहारों को एनडीए में बड़ी सफलता मिली है तो यादव और मुसलमानों को महागठबंधन में बड़ी सफलता मिली है। नवंबर 2005 और उसके बाद के विधान सभा चुनावों का परिणाम बताता है कि सदन में कुछ खास जातियों का आधिपत्य हो गया है। विधान सभा की 203 अनारक्षित सीटों में लगभग 100 विधायक राजपूत, भूमिहार और यादव जाति के जीतते रहे हैं। इनका नाम, क्षेत्र, पाटी का नाम भले बदल जाए, लेकिन विधायकों की संख्या सौ के आसपास ही रहती है।