भारतीय परंपरा में सिंदूर सुहाग के साथ-साथ सौंदर्य भी है। इससे चेहरे की दमक के साथ शरीर का आकर्षण भी बढ़ जाता है। लेकिन माथे का सिंदूर पोंछ दिया जाये या धो दिया जाये तो एक साथ महिला का बहुत कुछ खो जाता है। सिंदूर पोछना या धोना एक मुहावरा है। इसका इस्तेमाल आमतौर पर सुहाग उजड़ने के बाद होता है।

अब आप सोच रहे होंगे कि राजनीति में किसका सुहाग उजड़ गया है। राजनीति में एक चीज होती है सत्ता। सत्ता का सौंदर्य होता है, उसका आकर्षण होता है। उससे आशक्ति भी होती है। राजनीति से जुड़ा हर आदमी सत्ता के लिए लालायित रहता है। नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार से लालू यादव तक सब सत्ता के सौंदर्य, आकर्षण और उसके दुर्पयोग से जुड़े और बंधे रहे हैं।
बिहार की राजनीति में दो चेहरे पिछले 35 वर्षों से सत्ता के केंद्र में हैं लालू यादव और नीतीश कुमार। इनका अपना काल खंड रहा है, कथा रही है, कहानी रही है। इसमें एक तीसरे व्यक्ति का प्रवेश भी होता है, जिसे नरेंद्र मोदी कहा जाता है। देश के प्रधानमंत्री हैं। वे इन दोनों का इस्तेमाल करते हैं। लालू यादव का इस्तेमाल भूत यानी भय के लिए करते हैं और नीतीश कुमार का इस्तेमाल बूत यानी मुखौटा के लिए करते हैं। लालू यादव का भूत दिखाकर सवर्णों को भयाक्रांत करते हैं और नीतीश कुमार का बूत दिखाकर अतिपिछड़ों को संतुष्ट करते हैं। पीएम मोदी इन्हीं भूत और बूत के भरोसे 2025 में किसी सवर्ण को सत्ता सौंपने की जमीन बना रहे हैं। इसके लिए लगातार बिहार का दौरा कर रहे हैं।
पिछले एक महीने में दूसरी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 30 मई को बिहार आ रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इसी शाहाबाद और मगध की जमीन ने नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार को एक साथ धूल चटायी थी। इस चोट पर मरहम लगाने के लिए प्रधानमंत्री बिक्रमगंज में जनसभा को संबोधित करेंगे।
लेकिन प्रधानमंत्री के बिहार में रमने की असली वजह है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के इकबाल को धूमिल करना, सीएम की धमक को तिरोहित करना। प्रधानमंत्री यह बताना चाहते हैं कि अब नीतीश कुमार के नाम पर वोट को बांधे रखना संभव नहीं है। इसलिए खुद कमान संभाल ली है। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है कि पिछले साढ़े चार वर्षों के राजनीतिक निर्णय और सदन में नीतीश के भाषणों ने मुख्यमंत्री की गरिमा को आहत किया है, उनके व्यक्तित्व का क्षरण किया है। अब इसी शून्यता को पीएम नरेंद्र मोदी अपनी उपस्थिति से भरना चाहते हैं। अपने कार्यों की व्याख्या बिहार के संदर्भ में करना चाहते हैं।
बिहार की राजनीतिक जमीन पर प्रधानमंत्री भूत और बूत का खेल जमकर खेल रहे हैं। हर बार पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की छवि को नकारात्मक ढंग से प्रस्तुत करते हैं और मुख्यमंत्री नीतीश को मसीहा बताकर अतिपिछड़ों को भरमाये रखने की कोशिश करते हैं। बिहार में नीतीश कुमार की सत्ता का सिंदूर रहा था, सौंदर्य रहा था। नीतीश के नाम से विकसित बिहार की छवि उभरती थी। प्रधानमंत्री मोदी नीतीश कुमार की उसी छवि को समाप्त कर देना चाहते हैं। विकास का सारा श्रेय खुद लेना चाहते हैं। प्रधानमंत्री अगले चार-छह महीनों में बिहार में इतना दौरा करेंगे कि मुख्यमंत्री का नाम ही चर्चा से गायब हो जाएगा। पीएम मोदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सत्ता का सिंदूर पोंछ देना चाहते हैं, सत्ता के सौंदर्य को रौंद देना चाहते हैं। प्रधानमंत्री बिहार की पिछड़ी राजनीति को सवर्णों के हाथों में सौंपना चाहते हैं। झंझारपुर के बाद बिक्रमगंज उसी कड़ी का विस्तार है।