उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की सरकार में बिहार में जाति आधारित सर्वे का काम सफलतापूर्वक पूरा किया गया और इसकी रिपोर्ट के आधार पर जरुरतमंदों को उसकी आबादी के अनुरुप आरक्षण का लाभ देने काम किया गया है। विपक्षी पार्टियां जहां जाति को चुनावी राजनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग करती है वहीं हमारे नेता, जाति को विकास की इकाई के रूप में चिन्हित कर समाज के संतुलित, समग्र एवं समेकित विकास सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं। उन्होंने कहा कि जाति आधारित सर्वे कराकर उन्होंने जहां गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करने वाले 94 लाख परिवारों को दो – दो लाख रुपए की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराना सुनिश्चित किया वहीं सभी जाति, सभी वर्ग एवं सभी धर्म के लोगों को जो कि आर्थिक रूप से कमजोर थे उसके लिए नई आरक्षण व्यवस्था लागू की जिससे समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। हालांकि आरक्षण की नई व्यवस्था न्यायालय के विचाराधीन है लेकिन आशा है कि सरकार को इसमें निश्चित सफलता मिलेगी। इससे बिहार के विकास की प्रक्रिया को एक नई दिशा एवं नया आयाम प्राप्त होगा एवं लोहिया के समता मूलक समाज का सपना साकार होगा।
उन्होंने कहा कि केंद्र की एनडीए सरकार द्वारा देश में जातीय जनगणना कराने का फैसला लेना एक एतिहासिक कदम है और विपक्षी दलों का इस मसले पर टीका टिप्पणी करना विशुद्ध रुप से राजनीतिक अवसरवादिता के सिवाए कुछ नहीं है। राजद और कांग्रेस ने हमेशा सामाजिक न्याय की बातें तो कीं लेकिन जब उन्हें अवसर मिला तब उन्होंने जातीय आंकड़ों को सामने लाने की ईमानदार कोशिश नहीं की। यह उनकी राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी को दर्शाता है।
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार का स्पष्ट रूप से मानना है कि सामाजिक न्याय सिर्फ भाषणों और नारों से नहीं आता बल्कि उसके लिए ठोस और व्यावहारिक कदम उठाने होते हैं। जातीय सर्वेक्षण से मिली जानकारी का उपयोग कर सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाओं के लिए नीतिगत सुधारों की दिशा तय की है। इससे समाज के सभी वर्गों को उनके हिस्से का अधिकार सुनिश्चित किया जा सकेगा।