बिहार विधान सभा में बुधवार को सरकार जीत गयी, लेकिन सरकार की प्रतिष्ठा हार गयी। बिहार अभियंत्रण विश्वविद्यालय विधेयक 2021 पर सदन में चर्चा के दौरान विश्वविद्यालय के कुलाधिपति (चासंलर) को लेकर सत्ता और विपक्ष में मतभेद बढ़ने के बाद मत-विभाजन की नौबत आ गयी। इस मतविभाजन में विधेयक के पक्ष में 110 और विपक्ष में 89 वोट पड़े। तकनीकी रूप से मत विभाजन के बाद सदन से यह विधयेक पारित हो गया।
लेकिन 241 सदस्यों वाली विधान सभा में बहुमत के लिए 121 वोट चाहिए। लेकिन किसी भी विधेयक को पास कराने के लिए उपस्थित सदस्यों का बहुमत चाहिए। इस लिहाजसे विधेयक 21 वोट के बहुमत से पारित हो गया। लेकिन कुल सदस्यों के हिसाब से विधान सभा का बहुमत विधयेक को प्राप्त नहीं हो सका। विधान सभा में आमतौर पर विधेयक ध्वनिमत से पारित हो जाता है। लेकिन सत्ता पक्ष के सदस्यों की कम उपस्थिति को देखकर विपक्ष मत विभाजन की मांग कर देता है। बुधवार को भी यही हुआ। मतदान के समय उपस्थिति के हिसाब से सत्ता पक्ष के बहुमत से 11 विधायक कम थे। इसका आशय यह भी हुआ कि विधान सभा में सरकार की प्रतिष्ठा बचाने में सत्ता पक्ष नामाक रहा।
इस संबंध में एक घटना का जिक्र एक पूर्व विधायक करते हैं। 1977 में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री थे। किसी विधेयक पर उस समय भी मत विभाजन की नौबत आ गयी थी। इस मत विभाजन में विधेयक के पक्ष में बहुमत था, लेकिन कुल सदस्य संख्या के अनुपात में विधेयक के पक्ष बहुमत हासिल नहीं हो सका था। अगले दिन इसी बात को फोकस करते हुए एक अखबार ने खबर छापी थी। अगले दिन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया था कि विधेयक उपस्थित विधायकों की संख्या के बहुमत से पारित हो गया था, लेकिन विधान सभा की कुल सदस्य संख्या का उक्त विधेयक को बहुमत प्राप्त नहीं था।
यह कहा जा सकता है कि इस प्रकार के मतविभाजन से सरकार के अस्तित्व पर कोई असर नहीं पड़ता है, लेकिन सरकार के प्रबंधन तंत्र और फ्लोर मैनेजमेंट की विफलता जरूर उजागर होती है।