(27 नवंबर, 2020 को राज्यपाल के अभिभाषण पर माले विधायक दल के नेता महबूब आलम का संबोधन)
महोदय, आज राज्यपाल के अभिभाषण पर विमर्श हो रहा है, वाद-विवाद हो रहा है। मैं महोदय से आग्रह करूंगा कि आज जिस तरह से पूरे हिन्दुस्तान के किसानों ने तीन कृषि बिल के खिलाफ दिल्ली कूच किया है और इस सर्द मौसम में भी जिस तरह से केन्द्र की साम्प्रदायिक, फासीवादी नरेन्द्र मोदी की सरकार ने किसानों पर बर्बर जुल्म ढाया है और अभी भी जुल्म ढाये जा रहे हैं। महोदय, पंजाब-हरियाणा के किसानों की हालत देखिये, पूरे देश के किसानों को कॉरपोरेट घरानों का गुलाम बनाने के लिए यह जो तीन किसान बिल है, कानून है, उसमें से आवश्यक वस्तु अधिनियम के माध्यम से चावल, दाल, आटा, आलू, प्याज जैसे जीवन के आवश्यक खाद्य सामग्री को इसेंसियल वस्तु से हटाकर कॉरपोरेट घराने के अधिकार क्षेत्र में दे दिया है। इससे महोदय, आने वाले दिनों में बहुत भयानक तबाही होगी और भयानक तबाही ही नहीं, महंगाई बढ़ेगी। अभी तो कुछ लोगों ने प्याज खानी छोड़ दी, कुछ लोगों ने आलू खाना छोड़ दिया, कुछ लोग कुछ और क्या खाना छोड़ेंगे, लेकिन महोदय, जमाखोरी को जायज करार देकर नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश की जनता के विरोध में जो परिचय दिया है, मैं एलान करता हूं इस सदन के माध्यम से कि आने वाले दिनों में निश्चित रूप से जमाखोरी के माध्यम से एक-एक किलो चावल की कीमत 200 रुपये हो जायेगा।
((वीरेंद्र कुमार यादव के फेसबुक वॉल पर हर दिन पढि़ये बिहार विधान सभा की बैठकों में विधायकों का संबोधन))
महोदय, इसलिए मैं किसानों पर हो रहे बर्बर जुल्म के खिलाफ इस प्रस्ताव से निंदा की मांग करता हूं और मांग करते हुए मैं महोदय का ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूं कि बिहार विधन सभा चुनाव कोविड-19 की छाया और क्रूर व भयानक लॉकडाउन के कारण उत्पन्न विकट परिस्थितियों के बीच संपन्न हुआ। चुनाव में राजग को बहुत कम अंतर से जीत हासिल हुई, हालांकि कम मार्जिन वाली कई सीटों पर जो जीत हुई, हमारी कई आशंकाओं, हमारी जो दोबारा गिनती की मांग थी, उसका समाधान चुनाव आयोग अभी तक नहीं कर पाई है। बावजूद सरकार दावा नहीं कर सकती है कि चुनाव में उसके एजेंडे की जीत हुई है। पूरा चुनाव रोजगार, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधएं, जनता की जीविका, सम्मान और अधकारों तथा एनआरसी, एनपीआर, सीएए के खिलाफ इर्द-गिर्द केन्द्रित रहा और वे बिहार की आगे की राजनीति के एजेंडे के रूप में स्थापित हो चुके हैं। भाजपा-जदयू की लाख कोशिशों के बावजूद बेरोजगारी, प्रवासी मजदूरों के मुद्दे, स्कीम वर्करों-शिक्षकों के स्थायीकारण आदि सवाल चुनाव के केन्द्र में रहे और पूरे चुनाव भाजपा-जदयू के नेता इन मुद्दों से भागते रहे। महोदय, चुनाव में हमने देखा कि किस तरह से हमारे महागठबंधन की चुनाव सभाओं में लाखों की भीड़ थी, उत्साह था और किस तरह से राजग के चुनाव सभाओं में सन्नाटा था और उस सन्नाटे में हमने देखा कि किस तरह से हमारे मुख्यमंत्री जनता से कभी गिड़गिड़ाते रहे और कभी धमकाते रहे कि अगर सवाल करोगे तो कलक्टर को एलान किया कि इसको गिरपफ्तार करो। यही नहीं महोदय, ये गिड़गिड़ाते रहे कि हमारा यह आखिरी चुनाव है, हमको वोट दीजिए। इनको अहसास हो गया था कि पूरी जनता इनके खिलाफ एक जनयुद्ध का एलान कर दिया है। इसलिए हमारी जो आशंका है, कम मार्जिन की सीट में इनको जो जीत मिली है, उन पर दोबारा गिनती हो, उन आशंकाओं को दूर करें, नहीं तो इनपर जो इल्जाम लग रहा है कि चोर दरवाजे से सरकार चला रहे हैं, इस इल्जाम से ये उबर नहीं सकते हैं, बिल्कुल उबर नहीं सकते हैं। महोदय, कोरोना जनित लॉकडाउन से उत्पन्न गंभीर परिस्थितियों में सरकार ने लाखों लोगों की जिंदगी को खतरे में डालकर चुनाव करवाया, ताकि विधान सभा चुनाव की चोरी कर ली जाए। जनता ने उनके मंसूबों को नाकाम बना दिया। चुनाव ने राज्य को कोरोना विस्फोट के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। आज सरकार कोरोना नियंत्राण की रोकथाम पर अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन सच्चाई ठीक उलट है। मुख्यमंत्री 90 दिनों तक अपने आवास में छुपे रहे और सबसे शर्म नाम बात तो यह है कि चमकी बुखार की बात करें अथवा कोरोना महामारी की, अव्वल दर्जे के असफल नकारा मंत्री मंगल पांडेय को एक बार फिर से स्वास्थ्य मंत्रालय का जिम्मा दे दिया गया है। सरकार का दावा है कि बिहार में 1 करोड़ 35 से अधिक लोगों की कोरोना जांच हुई है। लेकिन यह रैपिड टेस्ट है, जो संक्रमण की सच्चाई उजागर नहीं करती। राज्य में आरटीपीसीआर की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। कोरोना संक्रमित आम लोगों की बात तो जाने दीजिए, सचिव स्तर के आला अधिकारियों को हम सबने तड़प-तड़प कर मरते देखा है। दरअसल, कोरोना संक्रमण ने बिहार की पूरी तरह ढह चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है, गर्भाशय घोटाला के बाद अब राजधनी पटना में सरकार की नाक के नीचे किडनी रैकेट उजागर हुआ है, जिसमें भाजपा के लोग संलग्न हैं। 24 मार्च को प्रधनमंत्री की अचानक लॉकडाउन की घोषणा के बाद जब लाखों मजदूरों के सामने पैदल ही घर लौटने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा, जिसकी पीड़ा और त्रासदी को हम कभी भूल नहीं सकते हैं। उनकी पीड़ा और त्रासदी के प्रति हम खामोश तमाशबीन नहीं रह सकते हैं। मोदी सरकार ने उनके साथ जो अमानवीय अत्याचार का व्यवहार किया इतिहास में इसके विरले ही उदाहरण हैं। पलायन रूक जाने की दावा करने वाली बिहार सरकार की तो पोल खुल गयी। प्रवासी मजदूरों की सबसे बड़ी संख्या बिहारी प्रवासी मजदूरों की थी। महोदय, मैं एक बात कहना चाहता हूं कि हमारे मुख्यमंत्री जी कितने सहृदय हो सकते हैं। मुख्यमंत्री जी के साथ एक बार हमारी वार्तालाप हुई थी, उन्होंने कहा, उनका मत है कि मैं तो इनको प्रवासी मानता ही नहीं हूं। तो आप क्या मानते हैं ? ये माइग्रेट नहीं हैं, ये स्वेच्छा से दूसरे प्रदेशों में रोजगार हासिल करने गए हैं। मैंने कहा महोदय, अगर इनको माइग्रेट नहीं मानते हैं तो पटना यूनिवर्सिटी का लड़का अगर मिथिला यूनिवर्सिटी में एडमीशन लेना चाहते हैं तो माइग्रेशन सर्टिफिकेट देने के औचित्य को खत्म कर दीजिए। यह हमारे मुख्यमंत्री जी का नजरिया है। महोदय, अभी गरिमा की बात कर रहे थे हमारे डिप्टी चीफ मिनिस्टर साहब, इनके पास कौन-सा जादू है, यह जादू जरा हमलोग भी सीखना चाहेंगे कि 5 साल में कभी-कभी इनकी उम्र साल बढ़ जाती है और कभी-कभी 5 साल में इनकी उम्र 12 साल बढ़ जाती है। यह कौन-सा जादू है, तारकिशोर जी, जरा हमलोगों को भी दीजिए, हमलोग भी अपनी उम्र थोड़ा घटा सकें। महोदय, जब मजदूर अपने बल पर भूख-प्यास से आने लगे तो हमारे मुख्यमंत्री ने कोरोना रोकने के नाम पर इन्होंने उनको राज्य की सीमा पर रोक दिया।
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