(27 नवंबर, 2020 को राज्यपाल के अभिभाषण पर एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान का संबोधन)
अध्यक्ष महोदय, महामहिम के अभिभाषण पर अपने खयालात के इजहार के लिए खड़ा हुआ हूं। महामहिम का भाषण दरअसल सरकार के इरादों की एक तस्वीर होती है। मैं इस पर बात करूंगा। मुझे इस सदन में बिहार विधन सभा सदस्य बनने का चौथी बार अवसर मिला है। मैं यहां के दरो दीवार के लिए नया नहीं हूं। हमारे बहुत सारे संगी साथी हैं और बहुत सारे मित्र यहां जीत कर आए हैं। पिछली बार जब मैं आया था, तब बड़ी सड़कों पर चलकर आया था, लेकिन अबकी बार मेरा आना एक पगडंडी से हुआ है। मुझे इस सफर को तय करने के लिए बड़ी सड़कों और सराओं को छोड़कर ये पगडंडी क्यों तलाश करनी पड़ी? मैं उसके संबंध में दो शब्द कहना चाहूंगा। देश में सांप्रदायिकता, समानता, समाजवाद और सेक्युलरिज्म की एक लड़ाई चल रही है।
अकलियतों ने, दलितों ने हमेशा मुबइना तौर पर सेक्युलरिज्म कहने वाले लोगों का साथ दिया, लेकिन सेक्युलर पार्टियों ने भी अकलियतों और दलितों के साथ इंसाफ नहीं किया। सांप्रदायिक ने तो इस पर नजर रखी ही चाहे हमारे दूसरे मित्र जो सांप्रदायिकता की पट्टी बांधकर चल रहे हों, उन्होंने दलितों और अकलियतों को मजबूर किया कि आज बेरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी एमआईएम को जय मीम और जय भीम का नारा देकर अपनी अलग राह बनानी पड़ी और मैं उसी पगडंडी से चलकर इस सदन में आया हूं और असल मजबूरी ये रही कि चाहे दूसरे मित्र जो अपने आप को सेक्युलर कहते हों, उन्होंने अकलियतों के साथ, दलितों के साथ इंसाफ नहीं किया और आप यह देखेंगे कि इस वक्त जय भीम और जय मीम का नारा देकर बेरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी झंडा लेकर ग्रांड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट के जरिए से अगर हम सीमांचल सेजीतकर आए हैं तो सीमांचल के लोगों ने क्यों जिताया, इस पर भी सदन को गौर करने की जरूरत है। मैं समझ रहा था कि महामहिम के अभिभाषण में इसका कोई संकेत मिलेगा। स्वतंत्रता के बाद समाजवाद के नारे भी लगे, स्वतंत्राता के बाद समाजी इंसाफ के नारे भी लगे, इंसाफ के साथ तरक्की का नारा भी लगा, सब का साथ सब के विकास का नारा भी लगा, लेकिन अकलियतों और दलितों को इंसापफ नहीं मिल सका और संतुलित विकास की बात कही गई। मैं साधुवाद देना चाहता हूं विपक्ष के, प्रतिपक्ष के नेता को, कि उन्होंने सीमांचल कमीशन की बात कही है। माननीय तारकिशोर जी, जो अभी उप मुख्यमंत्री बने हैं, मैं समझता हूं कि अपनी पार्टी के कार्यकर्ता नहीं बल्कि सीमांचल की उस पिछड़ी बस्ती की आवाज बनने का काम करेंगे। महोदय, सीमांचल की गाथा क्या है पूरे बिहार में सबसे पिछड़ा, सबसे ज्यादा पलायन, बाढ़ से प्रभावित महानंदा, डोभ, कनकई, बकरा नदियों से घिरी हुई बस्ती हर साल हजारों लोग विस्थापित हो रहे हैं। उसके बारे में कोई योजना नहीं बन पाई। परकैपिटा इनकम कम, पलायन सबसे ज्यादा, स्कूल कम बीमार सबसे ज्यादा, हॉस्पिटल से महरूम और उस पर कोई बात इसमें नहीं हो पाई। महोदय मैं उसकी तरफ नजर दौड़ाने की बात कहना चाहता हूं। मैं चाहता हूं नई सरकार से, मुख्यमंत्री जी सदन में नहीं हैं, मेरी आवाज उन तक पहुंचती होगी कि उन्होंने सेक्युलरिज्म का साथ देने का वादा किया था। हम लोग भी थोड़ी देर के लिए उसमें साथ गए थे, बिहार की जनता ने भी उस पर विश्वास किया था, लेकिन न जाने इस पवित्र रास्ते को छोड़कर फिर वो कहां कीचड़ के रास्ते में गुम हो गए और आज नतीजा यह हुआ है कि बिहार की जनता का विश्वास उन पर से उठा है। मैं चाहता हूं इस वक्त कि इस सदन का जो समय मिला है, हमको इस सदन को गंभीरता से बिहार के दलित, पिछड़ों की तरक्की की बात कही जाये। आज किसान विरोधी बिल पेश किए जा रहे हैं और पूरे बिहार में, पूरे हिंदुस्तान में किसान सड़कों पर आने पर मजबूर हो गए हैं। एमएसपी का कोई कीमत नहीं मिल पा रही है हमारे इलाके में धान, गन्ने की और मक्के की पैदावार हो रही है। कोई खरीददार नहीं है। लागत मूल्य भी किसानों को नहीं मिल पा रहा है। किसान खुदकुशी कर रहा है, बच्चों को स्कूल नहीं मिल पा रहा है, बीमारों को दवाइयां नहीं मिल पा रही हैं। आखिर ये न्याय के साथ तरक्की, ये ख्वाब है, ये सपना है, ये दीवाने की पर है, जमीन पर कुछ भी नजर नहीं आ रहा है। महोदय, मैं आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहूंगा कि किसी भी लोकतंत्रा की सफलता के लिए जरूरी है कि वहां जो अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हों, उनको जोड़ा जाये, अल्पसंख्यकों को अगर उसके जान-माल, इज्जत आबरू की पहरेदारी हो, उसको लिखने-पढ़ने, सरकारी नौकरी में सुविधओं में अगर हिस्सा मिले तो मैं समझता हूं कि यह प्रजातांत्रिक लोकतंत्रा की सबसे बड़ी कामयाबी होती है, लेकिन रिपोर्ट से खबरें आती हैं कि आज आजादी के वक्त जो अकलियत की हालत थी, उससे भी बदतर हो गई है, अकलियत के बच्चों को स्कूल तक नहीं मिल पा रहा है। उनके बीमारों को दवा नहीं मिल पा रही है। उनकी बस्तियों तक सड़क नहीं पहुंच पा रही हैं। आखिर ये नाइंसापफी कब तक होगी? उर्दू सेक्युलरिज्म की जबान है। जिसने सरफरोशी की आवाज दी कि
‘सरपफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है’।
मुल्क की आजादी के लिए माफी मांगने वालों की बात नहीं कहता, लेकिन गर्दन कटाने वालों को बड़ी ताकत दी थी उर्दू ने, लेकिन आज उस उर्दू को बिहार से निकाला जा रहा है। महोदय, मदरसे की हालत क्या है, मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे क्या बिहार के बच्चे नहीं हैं। मदरसे शिक्षकों को आखिर वाजिब तनख्वाह वक्त पर क्यों नहीं मिल पाती है?