राजद के विधान पार्षद और परिषद में आरक्षण कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष डॉ रामबली सिंह चंद्रवंशी ने राजद प्रमुख लालू यादव के साथ अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि अधिकारियों से काम करवाने का उनका अपना अंदाज था।
घटना 1990 के बाद की है। लालूजी मुख्यमंत्री थे। पिछड़ों में आत्म स्वाभिमान का एक नया जोश आया था। उस दौर में अरवल के तत्कालीन विधायक का पुत्र काफी मनबढ़ू था। उसका दलित-पिछड़ों के खिलाफ अत्यचार चरम पर था। इससे आक्रोशित ग्रामीणों ने विधायक पुत्र की पीट-पीटकर हत्या कर दी। रामबली सिंह पिता रामानंद सिंह अपने इलाके के समाजवादी आंदोलन के प्रमुख नेता थे और सामाजिक बदलाव के कार्यों में आगे रहते थे। इस वजह से उस हत्याकांड में रामानंद सिंह को भी आरोपित बना दिया गया। उस समय के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक गुप्तेश्वर पांडेय थे। वे रामबली सिंह के साथ पटना विश्वविद्यालय में पढ़ते थे। रामबली सिंह ने गुप्तेश्वर पांडेय से पिता का नाम प्राथमिकी से हटवाने का कई बार आग्रह किया, लेकिन वह टालते रहे।
इसके बाद एक विधायक को लेकर रामबली सिंह ने लालूजी से मुलाकात की। उसी समय उन्होंने एसपी को फोन लगाया। एसपी ने कहा कि पटना में ही हैं। शाम को पांच बजे आते हैं। इसके बाद लालूजी ने रामबली सिंह से शाम को दुबारा आने को कहा। निर्धारित समय पहले रामबली सिंह सीएम हाउस पहुंच चुके थे। लेकिन वे दूसरे कमरे में बैठे थे।
रामबली सिंह ने बताया कि गुप्तेश्वर पांडेय मामले से जुड़ी पूरी फाइल लेकर आये थे। चर्चा हुई तो एसपी ने फाइल मुख्यमंत्री की ओर बढ़ाया। लालूजी ने फाइल को बिना देखे अपने प्रधान सचिव की ओर बढ़ा दिया। इसके बाद लालूजी ने एसपी से कहा कि रामबली सिंह पार्टी के कार्यकर्ता हैं। इनकी मदद कीजिये। इसके बाद एसपी लौट गये। इस घटना के एक-दो दिन बाद ही उस प्राथमिकी से रामबली सिंह के पिता का नाम हट गया। रामबली सिंह कहते हैं कि लालूजी कार्यकर्ताओं की मदद तुरंत करते हैं। वे काम को कल पर टालने में विश्वास नहीं करते हैं।
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