टीटी यानी ट्रिपल टेस्ट। यह शब्द नगर निकाय चुनाव को लेकर खूब चर्चा में है। अखबारों की सुर्खिंया बन रहा है। लेकिन ट्रिपल टेस्ट है क्या? इसका तकनीकी पक्ष यह है कि इस टेस्ट के बाद बनिया जाति के लोग नगर निकाय में आरक्षण की सुविधा से वंचित हो जाएंगे। अभी बनिया समुदाय की चार जाति तेली, कानू, हलवाई और पनेरी को अतिपिछड़ा वर्ग की श्रेणी का लाभ नगर निकाय चुनाव में मिलता है और अधिकांश आरक्षित पदों पर बनिया ही जीत हासिल करते हैं। इन जातियों के अलावा बनिया समुदाय की अन्य जातियों को पंचायती राज व्यवस्था के तहत आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हाल के फैसले में कहा है कि पंचायत राज और नगर निकाय में ओबीसी को आरक्षण देने से पहले इसके लिए राज्य सरकार द्वारा आयोग गठित किया जाये। इसके बाद जातियों के सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक हिस्सेदारी का आकलन किया जाये। फिर आयोग अपनी अनुशंसा देगा। इसी अनुशंसा के आलोक में राज्य सरकार ओबीसी के लिए आरक्षण का कोटा तय करेगी। ट्रिपल टेस्ट का मतलब है जातियों का सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक हिस्सेदारी का अध्ययन करना। इसके लिए आयोग ने तीन शर्त तय की है। पहला है आयोग का गठन, दूसरा है आयोग की अनुशंसा के आलोक में आरक्षण के लिए जातियों का चयन और तीसरा है सभी प्रकार के आरक्षण का दायरा कुल मिलाकर 50 फीसदी से अधिक नहीं हो।
सर्वोच्च न्यायाय का मानना है कि नौकरियों में आरक्षण के लिए आरक्षण का प्रतिशत पंचायत राज और नगर निकाय में लागू नहीं किया जा सकता है। कोर्ट का कहना है कि संभव है कि कोई जाति सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हो सकती है, लेकिन राजनीति हिस्सेदारी से वंचित हो, जरूरी नहीं है। पर्याप्त राजनीतिक हिस्सेदारी वाली ओबीसी की जातियों का नगर निकाय में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
इसको दूसरे शब्दों में ऐसे समझें। राज्य सरकारों ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए ओबीसी जातियों की सूची पहले से बना रखी है। सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि ओबीसी की कई जातियों का जनप्रतिनिधि संस्थाओं में पर्याप्त भागीदारी पहले से है, उन जातियों को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए। राज्य सरकार अपने हिसाब से प्रतिशत तय कर सकती है, लेकिन समग्र आरक्षण 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए।
हम बिहार की बात करें तो ओबीसी दो भागों में विभाजित है। पिछड़ा वर्ग को नगर निकायों में आरक्षण नहीं है, जबकि अतिपिछड़ा वर्ग को निकाय चुनाव में आरक्षण मिलता है। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में देखें तो पिछड़ा वर्ग की दोनों श्रेणियों की उन जातियों को आरक्षण दिया जा सकता है, जिनका प्रतिनिधित्व नगर निकायों में नहीं हो पाता है। ठीक इसी तरह जिनका प्रतिनिधित्व होता है, उन्हें आरक्षण से वंचित करने की बात कही गयी है।
अभी अतिपिछड़ा वर्ग में शामिल बनिया समुदाय की चार जाति को आरक्षण का लाभ मिल रहा है। अतिपिछड़ा के नाम पर अधिकतर पदों पर इन्हीं चार जातियों का कब्जा है। इनका प्रतिनिधित्व बड़ी संख्या में है। इसलिए नगर निकाय चुनाव में आरक्षण के लिए गठित होने वाले आयोग की अनुशंसा में बनिया जाति को आरक्षण से वंचित किया जा सकता है। ये सामाजिक और शैक्षणिक रूप से भले पिछड़े हुए हों, लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व में इनकी हिस्सेदारी पर्याप्त है। फिलहाल वे अनारक्षित पदों पर बड़ी संख्या में निर्वाचित होते हैं। अभी हाल में विधान परिषद के लिए 24 सीटों के लिए हुए चुनाव में 6 सदस्य बनिया समुदाय से ही हैं। यानी 25 फीसदी हिस्सेदारी बनियों की है।
यह भी उल्लेखनीय है कि यादव के समान बनिया भी बड़ी संख्या में राजनीतिक पदों पर निर्वाचित हो रहे हैं और उनको राजनीतिक पदों पर आरक्षण के लाभ से वंचित किया भी जानी चाहिए। इससे ओबीसी की अन्य कम प्रतिनिधित्व वाली जातियों को लाभ मिल सकेगा।
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