गौतम सागर राणा। जेपी मूवमेंट के प्रमुख छात्र नेता। पहली बार बगोदर से 1977 में विधान सभा के लिए चुने गये थे। इसी सीट से 1985 में दुबारा निर्वाचित हुए। उसी साल लालू यादव विधान सभा के लिए दूसरी बार निर्वाचित हुए थे। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद लालू यादव के नेता प्रतिपक्ष बनने की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें शरद यादव ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था।
वीरेंद्र यादव न्यूज के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि लालू यादव से उनकी मुलाकात छात्र आंदोलन के दौरान हुई थी। 1977 में लालूजी लोकसभा के लिए चुने गये, जबकि गौतम सागर राणा विधान सभा के लिए चुने गये। कर्पूरी ठाकुर के मुख्यमंत्रित्व काल में गौतमसागर राणा पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी (संसदीय सचिव) थे। इस पदधारक को मंत्रिपरिषद का सदस्य ही माना जाता है, हालांकि अब इस पद का चलन समाप्त हो गया है।
उन्होंने बताया कि 1990 में वे चुनाव हार गये थे। उस चुनाव के बाद लालूजी मुख्यमंत्री बन गये थे। 1992 में विधान सभा कोटे से विधान परिषद निर्वाचित हुए। वे कहते हैं कि 1997 में जनता दल के विभाजन के बाद वे शरद यादव के साथ रह गये थे। 1998 में कार्यकाल समाप्त होने के बाद लालूजी ने उन्हें दुबारा विधान परिषद सदस्य बनाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन शर्त थी कि राजद के टिकट पर चुनाव लड़ना होगा। श्री राणा कहते हैं कि एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी के टिकट पर फिर से एमएलसी बनना स्वीकार नहीं था। इसलिए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
श्री राणा ने कहा कि झारखंड गठन को लेकर लालूजी और उनके बीच मतभेद था, वैचारिकी को लेकर टकराव था, लेकिन संबंधों में कटुता नहीं आयी थी। लालूजी का कहना था कि आपका मतभेद एजेंडे और मुद्दे को लेकर है। वे कहते हैं कि झारखंड में वे राजद और जदयू दोनों के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं।
अभी झारखंड जनता दल नामक पार्टी चला रहे हैं। श्री राणा कहते हैं कि लालूजी अपने विरोधियों की बात भी सुनते हैं और विरोध का सम्मान भी करते हैं। यही कारण है कि लालूजी अपने विरोधियों के बीच भी लोकप्रिय रहे हैं।
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