Cover Story of Birendra Yadav News, June 22
लालू प्रसाद यादव। किसी भी परिचय से बड़ा नाम। खेत, खलिहान से सत्ता के मचान तक की अनवरत यात्रा, निर्बाध संकल्प और तावा में रोटी की तरह समाज को पलट देने का सपना। इस सपने का साकार करने और उसके असर को देखने में संसदीय जीवन के 45 वर्ष गुजर गये। पहली बार 1977 में लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे और फिर बिहार की राजनीति के मुहावरा बन गये। बिहार की राजनीति में एक पीढ़ी जयप्रकाश नारायण के सान्निध्य में तैयार हुई थी और दूसरी पीढ़ी लालू यादव के विरोध की राजनीति में तैयार हुई। नीतीश कुमार, सुशील मोदी, रविशंकर प्रसाद जैसे नेताओं को राजनीतिक संजीवनी लालू विरोध की आंच से मिली। इस आंच को सुलगाए रखने के लिए कई तरह के राजनीतिक प्रपंच से लेकर षडयंत्र तक रचे गये। इस प्रयास में कई नेता शीर्ष पर पहुंचकर बिला गये, लेकिन लालूजी अपनी जगह पर विराजमान हैं।
लालूजी भारतीय राजनीति के सबसे बड़े नायक हैं, जिन्होंने बिहार जैसी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले समाज को बदलकर रख दिया। सवर्ण आधिपत्य को ध्वस्त कर दिया। सामाजिक परिवर्तन और बदलाव की ऐसी धारा तेज हुई कि अब उस धारा को रोक पाना किसी के लिए असंभव हो गया है। उस धारा के साथ बहना ही हर राजनीतिक दल की बाध्यता हो गयी है।
लालूजी एक व्यक्ति होने के साथ ही एक राजनीतिक धारा के पर्याय भी हैं। वामपंथी और समाजवादी आंदोलन ने बिहार की सामाजिक जमीन को लंबे समय तक सिंचित किया था। इनके आंदोलन का तौर-तरीका भले अलग-अलग था, लेकिन मसकद एक ही था सामाजिक बदलाव। वामपंथी जमीन में हिस्सेदारी को परिवर्तन का कारक मानते थे तो समाजवादी राजनीति में हिस्सेदारी को बदलाव का आधार मानते थे। इन दोनों आंदोलनों को सबसे अधिक ताकत यादव जाति से मिल रही थी। 1950 के बाद से राजनीति में यादव जाति एक प्रगतिशील, परिवर्तनकारी और समन्वयवादी ताकत रही है। पटना विश्वविद्यालय में भूमिहार आधिपत्य को चुनौती देने की बारी आयी तो यादव को आगे कर ही लक्ष्य हासिल किया जा सका। वहां भी लालू यादव ही बदलाव के विकल्प बने। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद नेता प्रतिपक्ष के चयन की बारी आयी तो दर्जनों शीर्ष नेताओं के बीच लालू यादव ही विकल्प बने। आज जब हम बिहार में परिवर्तन की बात करते हैं, वंचितों को आवाज देने की बात आती है तो लालू यादव का नाम आता है।
बिहार की राजनीति में लालू यादव की बात आती है तो सामाजिक न्याय का मुहावरा उन्होंने ही गढ़ा। सामाजिक न्याय की निरंतरता और उसे ताकतवर बनाये रखने के लिए सामाजिक सद्भाव जरूरी है। सामाजिक न्याय और सामाजिक सद्भाव को बनाये रखने के लिए सामाजिक प्रतिबद्धता भी जरूरी है, समाज के प्रति कमिटमेंट जरूरी है। लालू यादव आज सबसे बड़े ताकतवर नेता बने हैं तो इसके लिए यही तीन सूत्र थे- सामाजिक न्याय, सामाजिक समरसता और सामाजिक प्रतिबद्धता।
सामाजिक न्याय का आशय है समाज के वंचित वर्गों तक संसाधनों और अवसरों का समान वितरण ताकि उस समाज को भी विकास की मुख्यधारा में शामिल होने का मौका मिले। इसके साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन में समान हिस्सेदारी की बात भी आती है। न्याय का मतलब है जीवन यापन के सभी आवश्यक जरूरतों को पूरा करने का अवसर। इसके लिए लालू यादव का कार्यकाल याद किया जाता है। इस लक्ष्य को हासिल करने का हरसंभव राजनीतिक और प्रशासनिक प्रयास किये गये। जनप्रतिनिधि संस्थाओं में उनको प्रतिनिधित्व दिया गया।
सामाजिक समरसता का मतलब है कि शांतिपूर्ण सहजीवन और सहअस्तित्व। इस दिशा में प्रयास करते हुए लालू यादव ने धार्मिक उन्माद पर अंकुश लगाने का पूरा प्रयास किया। सामाजिक सम्मान से वंचित जातियों को सम्मान दिलाने के लिए उन जातियों के नायकों का महिमामंडन किया गया, उनमें से नायक तलाशे गये। उन जातियों में स्वाभिमान जागृति की पहल भी की गयी। इस प्रक्रिया में सबसे प्रबल कारक था सामाजिक प्रतिबद्धता यानी कमिटमेंट।
सामाजिक कमिटमेंट की वजह से ही लालू यादव बदलाव के नायक और परिवर्तन के वाहक बन पाये। उन्होंने सामाजिक न्याय की राह में आने वाली सभी बाधाओं को दूर किया। सामाजिक समरसता के बाधक तत्वों में दूर किया गया। उन्होंने सत्ता के लिए सामाजिक न्याय से कभी समझौता नहीं किया। 15 वर्षों तक बिहार सरकार और 5 वर्षों तक केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हुए उन्होंने हर वक्त सामाजिक न्याय के लिए प्रतिबद्धता दर्शायी और इसे हासिल करने का प्रयास किया। सामाजिक परिर्वतन में उनकी भूमिका का महत्वपूर्ण रही।
लालू यादव का संसदीय जीवन लगभग 45 वर्षों का हो गया है। इस दौरान सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री समेत अनेक जिम्मेवारियों का निर्वाह किया। इन जिम्मेवारियों के हर मोड़ पर वे सामाजिक न्याय, सामाजिक सद्भाव और सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ काम करते रहे। इस राह में अनेक बार रोड़े भी अटकाये गये, लेकिन बदलाव की धारा कभी कमजोर नहीं पड़ी, धार की गति धीमी नहीं हुई। अपने संसदीय जीवन के 45 वर्षों की यात्रा पूरी के करने के बाद भी भारतीय राजनीति में लालूजी की प्रासंगिकता बनी हुई है, वे बिहार की राजनीति के लिए अपरिहार्य तत्व बने हुए हैं तो उसकी जड़ में है सामाजिक न्यास और सद्भाव के प्रति प्रतिबद्धता, कमिटमेंट। यही बिहार की राजनीतिक धारा है और समाज की प्रतिबद्धता भी। इसके लिए प्रेरणा पुरुष हैं लालू यादव और समाज बदलने के प्रति उनका समर्पण।
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