श्याम रजक। बिहार की राजनीति का जाना-माना चेहरा। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सान्निध्य में राजनीति का ककहारा सीखा और अपने संघर्षों के दम पर बिहारी राजनीति के अपरिहार्य अंग बन गये। उनके राजनीतिक जीवन और संसदीय यात्रा से सभी लोग परिचित होंगे। वे राबड़ी देवी और नीतीश कुमार दोनों सरकारों में मंत्री रहे। राजनीति का ठौर भले बदलता रहा हो, लेकिन धारा एक ही रही है – समाजवाद। फिलहाल वे राजद के साथ हैं।
श्याम रजक स्कूली जीवन में ही कुछ खास करने को उत्सुक थे। वे एनसीसी में भी शामिल हुए और कई उपलब्धियां हासिल कीं। वीरेंद्र यादव न्यूज के साथ बातचीत में एनसीसी कैडेड के रूप में अपने कार्यों और पदयात्री के रूप में अपनी यात्राओं को साझा किया। उन्होंने बताया कि बचपन में सेना के अधिकारी बनना चाहते थे, इसलिए एनसीसी में शामिल हुए थे। इसमें ए, बी और सी ग्रेड का सर्टिफिकेट हासिल किया। एनसीसी में पारा जंपर भी थे। उन्होंने आसमान में कई बार छलांग भी लगाया था। मनाली में 1975-76 में पाराजम्प का एक महीने का प्रशिक्षण भी लिया था। आगरा में पंद्रह हजार (15000) फीट की ऊंचाई से छलांग लगायी थी। इससे पूर्व छतरी के इस्तेमाल और लैंडिंग के संबंध में भी पूरी जानकारी दी गयी थी। उन्होंने कहा कि ये रोमांचकारी अनुभव था और ऐसे अनुभवों से आदमी साहसी बनता है।
उनका दूसरा परिचय पदयात्री के रूप में भी है। वे चार-पांच महत्वपूर्ण यात्रा देश के विभिन्न हिस्सों में कर चुके हैं। इन सभी यात्राओं का नेतृत्व चंद्रशेखर ने किया था। उनकी ही प्रेरणा से वे राजनीति में आये थे। उनकी यात्राओं में सबसे महत्वपूर्ण था- भारत यात्रा। यह यात्रा 6 जनवरी, 1983 को कन्याकुमारी से शुरू हुई थी और 25 जून, 1984 को दिल्ली के राजघाट पर समाप्त हुई थी। इस यात्रा में श्याम रजक भी शामिल थे। इस यात्रा के संबंध में उन्होंने बताया कि यह यात्रा कई राज्यों से होकर गुजरी थी और इसको आम लोगों का व्यापक समर्थन मिल रहा था। इसमें देश भर के नेता अलग-अलग जगहों पर शामिल हो रहे थे। इस यात्रा में महाराष्ट्र में कर्पूरी ठाकुर भी शामिल हुए थे।
उड़ीसा के कालाहांडी में भूखमरी के दौरान पीडि़तों की पीड़ा और सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए कालाहांडी-दिल्ली की पदयात्रा में भी शामिल हुए थे। यह यात्रा 1984 में हुई थी। ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद जालियावालाबाग से दिल्ली तक की यात्रा की थी। आचार्य नरेंद्र देव के जन्म शताब्दी वर्ष पर 1988-89 में रांची से कटनी तक की यात्रा की थी। इसमें भी श्याम रजक शामिल थे। इस कार्यक्रम में हिस्से लेने के लिए देशभर के अलग-अलग हिस्सों से पदयात्री पहुंचे थे। 1992 से पहले भितरहरवा से पटना तक की पदयात्रा में भी शामिल हुए थे।
श्याम रजक कहते हैं कि सभी पदयात्रा चंद्रेशखर के नेतृत्व और मार्गदर्शन में आयोजित किया गया था। यात्रा के दौरान लोगों का भरपूर सहयोग और समर्थन मिलता था। हर दिन 15 से 20 किलो मीटर की यात्रा करते थे। वे कहते हैं कि इन यात्राओं से भारत को समझने का मौका मिला। भारत की समस्या और संभावनाओं को भी समझने का मौका मिला। इन अनुभवों का लाभ राजनीति की राह में चलने के भी दौरान मिला।