मंगलवार को नयी सरकार के मंत्रियों के शपथ ग्रहण का दिन था। सुबह नौ बजे से राजभवन में गहमागहमी बढ़ने लगी थी। विधायकों और कार्यकर्ताओं का मजमा जुटने लगा था। भीड़ अप्रत्याशित थी। राजभवन के सभागार में खड़े होने की जगह नहीं बची थी। काफी सारे लोग बाहर मैदान में ही डटे रहे।
हम भी करीब साढ़े 10 बजे पहुंचे। कार्डधारी दर्शकों का तांता लगा हुआ था। इस बार मीडिया वालों के लिए विशेष व्यवस्था नहीं थी। पीआरडी या किसी पार्टी कार्यालय से पास का इंतजाम कर चुके मीडियाकर्मी भी भीड़ में शामिल थे। लेकिन हमारे पास राज भवन की ओर से जारी आमंत्रण कार्ड नहीं था। इसलिए राजभवन के जनद्वार मतलब शपथग्रहण स्थल वाली जगह के बगल से निकलने वाली सड़क के बाहर गेट पर झख मार रहे थे। धीरे-धीरे बिना पास वाले पत्रकारों का मजमा बढ़ता जा रहा था। इससे पहले जब भी शपथ ग्रहण का मौका आया, गेट के पास पीआरडी के स्टाफ खड़े रहते थे और पत्रकारों को अंदर जाने की इजाजत देते थे। इस बार ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी।
इधर, एक पत्रकार साथी ने हमसे कहा कि गोवार सरकार के आते आप ही सड़क पर आ गये। आपको भी कार्ड नहीं मिला। इस तरह की टिप्पणी को सुनने के साथ ही हमारी नजर खबर पर लगी हुई थी। हमने देखा कि रामगढ़ के विधायक सुधाकर सिंह भी कार्यकर्ताओं के साथ कार्ड लेकर लाइन में लगे हुए थे। पहले तो कुछ समझ में नहीं आया कि जिस व्यक्ति को मंत्री पद की शपथ लेनी है, वह जनता की लाइन क्यों लगे हुए हैं। हम सुधाकर सिंह के पास गये। हमने पूछा कि आप का नाम उधर (मंत्री पद के लिए ) चल रहा है और आप इधर लाइन में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि ऐसा कुछ नहीं है। राजभवन जाना है तो इसी रास्ते से चले आये।
लेकिन उत्सुकता बढ़ती जा रही थी कि ये सरकार में शामिल हो रहे हैं या नहीं। स्वाभाविक था कि जिस व्यवस्था में विधायक पैदल राजभवन जाने को तैयार नहीं हैं। शपथ हॉल के दरवाजे पर कार से उतरते हैं, उस दौर में मंत्री का पदग्रहण करने वाला व्यक्ति पैदल जा रहा है। शोर-शराबे के बीच कार्यक्रम शुरू होने से थोड़ी देर पहले बिना पास वाले पत्रकार भी राजभवन के गेट के अंदर प्रवेश कर गये। इस बीच हम पास का इंतजाम कर चुके थे।
सभागार में पहुंचे तो भीड़ खचाखच थी। कुर्सियों पर बैठे व्यक्ति से ज्यादा खड़े थे। हम भी भीड़ में शामिल होकर आगे बढ़ने की कोशिश करते रहे। हमारी कोशिश थी कि प्रारंभ में ही मंत्रियों के नाम सुन लें। लेकिन शोर में राज्यपाल के प्रधान सचिव द्वारा मंत्रियों के नामों की घोषणा सुन नहीं पाये। मंत्रियों के बैठने की जगह से इतनी दूरी पर थे कि देखना भी संभव नहीं था। अब शपथ ग्रहण का इंतजार करना था। पांच-पांच लोग झुमर की तरह शपथ पढ़ रहे थे। चौथी टीम में सुधाकर सिंह भी शपथ लेने पहुंचे। अब आश्वस्त हो गये कि सुधाकर सिंह मंत्री बने हैं। बाद में उनके जिम्मे कृषि विभाग सौंपा गया।
शपथ ग्रहण के बाद नाश्ते का उत्तम प्रबंध था। बड़ा पंडाल बना हुआ था। कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटी हुई थी। मंत्रियों के लिए आम लोगों से अलग इंतजाम किया था, ताकि उनको अहसास हो सके कि अब वे आम आदमी नहीं है। राजभवन में शपथ लेने वाला आदमी आम नहीं होता है। उसके पीछे सत्ता की ताकत जुट जाती है और उसकी शुरुआत नाश्ते के टेबल से ही हो जाती है।