बिहार विधान सभा में 24 अगस्त को नवगठित सरकार विश्वास मत हासिल करेगी। कितनी छोटी-सी सूचना है। जरूरत पड़ने पर हर सरकार विश्वास मत हासिल करती है। राजनीति की यह सामान्य प्रक्रिया है। 164 विधायकों के समर्थन वाली नीतीश कुमार सरकार को बहुमत साबित करने की जरूतर क्या थी। राज्यपाल ने बहुमत साबित करने को कहा भी नहीं था।
दरअसल सरकार द्वारा स्वेच्छा से लाये गये विश्वास प्रस्ताव के आंत में दांत फंसा हुआ है। इसके माध्यम से स्पीकर विजय सिन्हा की कुर्सी को कुरेद देने की पूरी रणनीति बनायी गयी है। 10 अगस्त को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने शपथ ली, उसी दिन कैबिनेट की बैठक में विश्वास मत हासिल करने के लिए प्रस्ताव भी स्वीकार किया गया। तिथि रखी गयी 24 अगस्त। ठीक उसी दिन 10 अगस्त को ही 50 से अधिक विधायकों ने स्पीकर विजय सिन्हा के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया, जिसके 14वें दिन या उसके बाद नोटिस के संदर्भ में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा हो सकती है।
नोटिस अविश्वास प्रस्ताव नहीं है, सिर्फ अविश्वास प्रस्ताव की सूचना है। नोटिस को सदन की बैठक में रखा जायेगा और यदि अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए 50 से अधिक सदस्यों ने अपनी सहमति दी तो अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होगी और मतदान भी हो सकता है। इसके साथ यह व्यवस्था है कि अविश्वास प्रस्ताव चलते सत्र के दौरान ही लाया जा सकता है। इसके लिए विशेष सत्र नहीं बुलाया जा सकता है। लेकिन महागठबंधन की नवगठित सरकार का पहला एजेंडा है स्पीकर विजय सिन्हा की विदाई। 10 अगस्त को दिये नोटिस में विधायकों ने कहा है कि अध्यक्ष द्वारा अपने पद की गरिमा के विरुद्ध कार्य किया गया है। उन पर समानांतर सरकार चलान का आरोप भी लगा है। मुख्यमंत्री के अधिकार क्षेत्र का हनन और टकराव की स्थिति उत्पन्न करने का आरोप लगाया गया है।
सरकार स्पीकर के अविश्वास प्रस्ताव के लिए विशेष सत्र नहीं बुला सकती है, इसलिए बहुमत हासिल करने के लिए विशेष सत्र बुलाया गया। विधान सभा की कार्यसंचालन नियमावली के अनुसार, सरकार भी स्वेच्छा से भी विश्वास मत हासिल कर सकती है। इसके पहले राज्यपाल के कहने पर सरकार विश्वास मत हासिल करती थी। नीतीश अब तक राज्यपाल के कहने पर विधान सभा में विश्वास मत हासिल करते रहे हैं। यह पहला मौका है, जब सरकार खुद स्वेच्छा से विश्वास मत हासिल करने के सत्र आहूत की है।
विश्वास मत हासिल करने के लिए सत्र में बैठक होगी। संविधान की व्यवस्था के अनुसार, चालू सत्र में ही स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है। तकनीकी रूप से विधान सभा का विशेष सत्र सरकार के बहुमत साबित करने के लिए बुलाया गया है, जबकि व्यावहारिक रूप से यह बैठक स्पीकर के खिलाफ अविश्वास पर चर्चा के लिए ही बुलायी गयी है। चूंकि स्पीकर के खिलाफ विश्वास प्रस्ताव लाने के लिए सत्र का चलना जरूरी था, इसलिए विश्वास मत के लिए बैठक बुला लिया गया।
राजनीतिक गलियारे की चर्चा के अनुसार, 24 अगस्त की कार्यसूची में पहला कार्य विश्वास मत हासिल करने का होगा। लेकिन सदन की बैठक शुरू होने के बाद सत्तारूढ दल के विधायक अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस पर चर्चा की मांग करेंगे। वैसी स्थिति में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिए सहमति देना स्पीकर के लिए बाध्यकारी हो जाएगा। व्यवस्था के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के समय आसन पर उपाध्यक्ष होंगे। वे अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा भी करवा सकते हैं या सीधे अविश्वास प्रस्ताव पर मत विभाजन करवा सकते हैं। यह उनके विवेक पर निर्भर है। इसके बाद दिन में जब दूसरी बार बैठक होगी तो सरकार के विश्वासमत पर चर्चा होगी और मतदान होगा। यदि 24 तारीख को सदन की बैठक शुरू होने से पहले स्पीकर इस्तीफा दे देते हैं तो अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस पर चर्चा की आश्यकता ही नहीं पड़ेगी।