भाजपा से नाता तोड़कर नीतीश कुमार राजद के साथ सत्ता में लौटे हैं। अभी नीतीश कुमार ने विधान सभा में विश्वास मत भी हासिल नहीं किया है, लेकिन भाजपा ने मुख्यमंत्री के प्रति विश्वास व्यक्त कर दिया है। भाजपा के नेता और संगठन के पदाधिकारी नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के मंत्रियों के प्रति हमलावर नहीं होंगे। भाजपा का पूरा तंत्र लालू यादव, उनका परिवार और उनकी पार्टी के मंत्रियों को टारगेट करेगा। 24 अगस्त को भाजपा विश्वास मत पर बहस के दौरान नीतीश कुमार की विफलता को नहीं उठायेगी, बल्कि राजद और उसके कथित जंगलराज को ही बहस के केंद्र में रखेगी। भाजपा की पूरी रणनीति राजद को घेरने की है। भाजपा की सांस अब भी जदयू में अटकी हुई है।
भाजपा सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने नीतीश कुमार और उनके मंत्रियों पर हमला करने से मना किया है। नीतीश कुमार और जदयू पर हमला करना होगा तो यह काम आरसीपी सिंह करेंगे। भाजपा के कोई नेता हमला नहीं करेंगे। दरअसल भाजपा को भरोसा है कि नीतीश कुमार की राजद के साथ नयी दोस्ती किसी सिद्धांत और नीति के लिए हुई है। यह शुद्ध कुर्सी का सौदा है। इसमें लंबे समय तक स्थायित्व संभव नहीं है।
भाजपा की पूरी रणनीति तेजस्वी यादव, उनके मंत्री और राजद को खलनायक साबित करने की है। इसकी आड़ में नीतीश कुमार से भाजपा सिर्फ सवाल पूछेगी। भाजपा एनडीए में वापसी की राह बंद नहीं करना चाहती है। जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार चिराग पासवान के बाद आरसीपी सिंह के ‘विभीषणकारी’ भूमिका से तत्काल राहत पाने के लिए भाजपा से अलग हुए हैं। भाजपा के साथ उनका टकराव न स्थायी है, न अंतिम।
इसके साथ ही तेजस्वी यादव और उनके मंत्रियों के खिलाफ लगने वाले आरोप के बचाव में न मुख्यमंत्री और न उनके प्रवक्ता आगे आने वाले हैं। वे बस सरकार के विकास के राग अलापेंगे। राजद की सबसे बड़ी कमजोरी है कि उसके पास भाजपा के पूर्व मंत्रियों के खिलाफ कोई दस्तावेजी साक्ष्य नहीं हैं। इस दिशा में काम करने वाली कोई टीम भी नहीं है। तेजस्वी यादव के साथ टीम में शामिल 3-4 लोग सिर्फ उनके लिए संदर्भ और डाटा जुटाने का काम करते हैं। पार्टी के अन्य नेता और प्रवक्ता के पास गलथेथरी के अलावा कुछ नहीं होता है। बिहार भाजपा की विफलता का कोई डाटा उनके पास नहीं है। राजद प्रवक्ता आरएसएस और नागपुर से आगे नहीं बढ़ पाते हैं।
राजद नेता तेजस्वी यादव को यह समझ लेना चाहिए कि नयी सरकार में उनकी भूमिका पर ही पार्टी की छवि निर्भर करती है। वे नीतीश कुमार की विकास योजनाओं के भरोसे अपनी पार्टी का आधार विस्तार नहीं कर सकते हैं। इसके लिए कार्यकर्ताओं को ‘कार्यशील’ और मंत्रियों को ‘काम-कुशल’ बनाना होगा। नीतीश कुमार के साथ तेजस्वी यादव की दूसरी पारी काफी चुनौती भरी है। इसमें सतर्कता भी जरूरी है और सजगता भी।