पटना में संचालित होता है प्रेरणा कोचिंग। इस कोचिंग के माध्यम से प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क तैयारी करायी जाती है। एक दिन हम प्रेरणा के कार्यालय में बैठे थे। एक छात्र आया। वह प्रेरणा के संबंध में जानकारी हासिल करने आया था। एक शिक्षक ने उससे पूछा कि आप किस कैटेगरी के हैं। उसने बताया कि जेनेरल कैटेगरी के हैं। फिर अगला सवाल – किस जाति के हैं। उसने बताया कि यादव। फिर एक और सवाल- यादव जाति से हो तो जेनेरल कैसे। उसने बताया कि वह क्रीमीलेयर में आता है, इसलिए आरक्षण का फायदा नहीं मिलता है। अत: जेनेरल कैटेगरी में खुद को मानता है। इसमें यह जानना जरूरी है कि वह केंद्रीय सेवाओं के लिए जेनेरल कैटगरी में आता है, लेकिन बिहार सरकार की सेवाओं में वह बीसी आरक्षण का हकदार है। खैर।
जाति और आरक्षण। दो अलग-अलग चीज हैं, लेकिन आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। बिहार सरकार जाति आधारित गणना के पहले चरण की शरुआत कर चुकी है। अभी जातियों के घर गिने जा रहे हैं। यह प्रक्रिया 7 से 21 जनवरी तक चलेगी। दूसरे चरण में यानी अप्रैल महीने में जाति के व्यक्ति गिने जाएंगे। सरकारी शब्दावली में यह जाति जनगणना नहीं है, बल्कि जाति आधारित गणना है। इसमें जाति विशेष के व्यक्ति, परिसंपत्ति, संसाधन और सरकारी सेवाओं में उनकी हिस्सेदारी की गणना की जाएगी। उनमें रोजगार और बेरोजगारी, आवास और आवासहीन, शिक्षा-अशिक्षा समेत कई तरह की जानकारी एकत्रित की जाएगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मानें तो सरकारी योजनाओं के निर्धारण और चयन में इन आंकड़ों की मदद ली जाएगी। विकास की धारा का प्रवाह तय करने में जाति आधारित गणना के आंकड़ों की मदद ली जाएगी। सरकार का कहना है कि इन आंकड़ों को सार्वजनिक किया जाएगा।
इन आंकड़ों की उपयोगिता और औचित्य हर पार्टी के लिए अलग-अलग है। इन आंकड़ों का इस्तेमाल विकास योजनाओं के लिए कम और राजनीति के लिए ज्यादा किया जाएगा। यह भी कह सकते हैं कि इन आंकड़ों का इस्तेमाल सिर्फ राजनीति के लिए ही किया जाएगा। क्योंकि योजनाओं के निर्धारण के लिए जो मानदंड तय हैं, उसमें जाति आधारित गणना का कोई मायने नहीं है।
वीरेंद्र यादव न्यूज का आकलन है कि जाति आधारित गणना के सार्वजनिक होने के बाद सबसे पहले आरक्षण की सीमा पुनर्निर्धारण की मांग उठेगी। सवर्णों के आरक्षण के लिए आरक्षण की सीमा 50 फीसदी लांघने के बाद अब इसके अतिक्रमण की मांग उठेगी। बिहार की वर्तमान सरकार में शामिल सात पार्टियों में से कांग्रेस को छोड़ दें तो सबका सामाजिक आधार गैरसवर्ण ही हैं। बिहार में सवर्णों की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है, जबकि उन्हें 10 फीसदी आरक्षण दिया गया है। वैसी स्थिति में महागठबंधन सरकार में पिछड़ा और अतिपिछड़ा आरक्षण की सीमा बढ़ायी जा सकती है। अभी बिहार में ओबीसी को 33 फीसदी आरक्षण प्राप्त है। इसमें 18 प्रतिशत अतिपिछड़ा, 12 प्रतिशत पिछड़ा और 3 प्रतिशत पिछड़ा महिला के लिए आरक्षित है। संभव है कि समग्र पिछड़ा आरक्षण की सीमा 45 प्रतिशत किया सकता है। हर वर्ग में 35 फीसदी महिला आरक्षण के बाद संभव है कि 3 फीसदी पिछड़ा महिला आरक्षण समाप्त कर पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग की दो श्रेणी में आरक्षण निर्धारित कर दिया जाये।
बिहार में जिस तरह से अतिपिछड़ी जातियों पर भाजपा निशाना साध रही है और नीतीश कुमार के नेतृत्व में एकजुट पिछड़ा वोट भरकने लगा है, वैसे में जाति आधारित गणना महागठबंधन के लिए संजीवनी साबित हो सकता है। आरक्षण की सीमा बढ़ाकर ओबीसी वोटों को महागठबंधन के साथ एकजुट रखा जा सकता है। जाति आधारित गणना को लेकर तेजस्वी यादव बराबर आक्रामक रहे हैं और इसे वर्तमान मुकाम तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका तेजस्वी की रही है। इसका लाभ भी महागठबंधन को मिलेगा। इस पूरी प्रक्रिया में भाजपा की भूमिका नकारात्मक सहयोगी की रही है। वह हर बार पेंच फंसाती रही है, लेकिन सिरे से नकार भी नहीं सकती है।
दरअसल जाति आधारित गणना के साथ मंडल राजनीति का दूसरा दौर शुरू हो रहा है। भाजपा के ‘भव्य मंदिर’ के समानांतर महागठबंधन ‘संपूर्ण मंडल’ की राजनीति शुरू होगी। नीतीश कुमार राष्ट्रीय राजनीति में संपूर्ण मंडल को अमोघ अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करेंगे। इसके अलावा विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है। महंगाई, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता मरे हुए मुद्दे हैं। इनके नाम पर वोट को गोलबंद करना संभव नहीं है। मंडल ही एक ऐसा राजनीतिक मुद्दा है, जिसका राष्ट्रीय सरोकार है और जिसे देश भर के लिए राजनीतिक एजेंडा बनाया जा सकता है। बिहार की जाति आधारित गणना से अगले लोकसभा चुनाव का एजेंडा तय होगा। केंद्रीय और राज्य स्तरीय आरक्षण की सीमा में व्यापक बदलाव आएगा। क्रीमीलेयर की भी नयी व्याख्या शुरू होगी और फिर किसी यादव को जेनेटरी कैटेगरी में होने के नये मायने भी सामने आएंगे।