अभी से लगभग 16 महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर तैयारी शुरू हो गयी है। इस रेस में भाजपा सबसे आगे है। लोकसभा क्षेत्र विशेष में अपनी ताकत का आकलन करके भाजपा ने रणनीति का निर्धारण करने के लिए विस्तारकों की टीम गठित कर दी है। बिहार की राजनीति में बिन पेंदी का लोटा टाइप पार्टियां अपने लिए नयी जगह की तलाश कर रही हैं। राजद और जदयू गठबंधन की सात पार्टियां का अपना दलदल है। इन दलों के दावे-प्रतिदावे और वास्तविक ताकत को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। आज से हम लोकसभा चुनाव के संदर्भ में विशेष श्रृंखला की शुरुआत कर रहे हैं – लोकसभा की चौखट विद वीरेंद्र यादव।
लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा की तैयारी के साथ ही भूमिहारों ने भी दावेदारी जताने की शुरुआत कर दी है। बिहार की लोकसभा सीटों के संदर्भ में बेगूसराय, मुंगेर, नवादा और जहानाबाद को भूमिहार लैंड माना जा रहा है। 2008 में परिसीमन के बाद मुंगेर और नवादा सीट पर भूमिहारों का कब्जा रहा है। इन चार सीटों को भूमिहार प्रभाव वाला माना जाता है। इसलिए भाजपा का भूमिहार खेमा इन सीटों पर अपनी दावेदारी जता रहा है। इसके अलावा मोतिहारी, वैशाली और मुजफ्फरपुर सीटों पर भूमिहारों की दावेदारी है। वर्तमान लोकसभा की स्थिति में बेगूसराय से भाजपा के गिरिराज सिंह और नवादा से लोजपा के चंदन कुमार सांसद हैं। माना यह जा रहा है कि चंदन कुमार देर-सबेर भाजपा में ही शामिल होंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में जहानाबाद से एनडीए के कोटे में जदयू के चंदेश्वर चंद्रवंशी निर्वाचित हुए थे। इस जीत को जहानाबाद के भूमिहारों ने अपनी पराजय माना था। उन्हें लगता था कि भूमिहार की सीट को नीतीश कुमार ने कहार को दे दिया। विधान सभा में जदयू की पराजय में एक बड़ी वजह यह भी थी।
मुंगेर सीट पर अभी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह सांसद हैं। माना जा रहा है कि वे 2024 का चुनाव नवादा सीट से लड़ेंगे। राजद के गठबंधन के कारण ललन सिंह को नवादा सीट सेफ लग रहा है। मोतिहारी, मुजफ्फरपुर और वैशाली से भूमिहार सासंद हुए हैं, लेकिन इन सीटों से भाजपा के कोई भूमिहार सांसद नहीं हुए हैं। भाजपा के भूमिहारों का मानना है कि भूमिहार अब भाजपा के साथ हैं, इसलिए भूमिहार प्रभाव वाली सीटों पर उनका दावा बनता है। अभी भाजपा के एकमात्र गिरिराज सिंह लोकसभा सदस्य हैं। उनकी उम्र राजनीतिक रूप से एक्सपायर मानी जा रही है। वैसे में इस सीट पर उम्मीदवार बदलने की चर्चा है। कुल मिलाकर भूमिहारों ने दबाव की राजनीति शुरू कर दी है। इसमें कोई नुकसान नहीं है, लेकिन फायदे की संभावना व्याप्त है।