जहानाबाद लोकसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आयी थी। यहां से पहली बार सत्यभामा देवी निर्वाचित हुई थीं। उन्होंने 1957 और 1962 में लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया। 1957 से 2014 तक यह सीट यादव और भूमिहार के बीच अटकी रही। यहां से इसी दो जाति के लोग सांसद बनते रहे थे। 2019 में पहली बार जरासंघ की जमीन पर किसी कहार ने अपना परचम लहराया। यह पूरे मगध के लिए ऐतिहासिक घटना थी।
देश में अब तक चार बार परिसीमन हो चुका है। हर बार यह सामान्य सीट रही। इस सीट पर यादव और भूमिहार का ही कब्जा रहा है। सांसदों की पार्टी या नाम भले बदल जा रहे थे, लेकिन जाति गोवार और भूमिहार से आगे नहीं बढ़ पा रही थी। लेकिन 2019 में यह अवधारणा समाप्त हो गयी। इस सीट से जदयू के टिकट पर चंद्रेश्वर चंद्रवंशी निर्वाचित हुए। पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, जरासंध का जुड़ाव मगध से रहा था। उनकी राजधानी राजगीर में थी। बिहार में अन्य इलाकों की तुलना में मगध में कहारों की आबादी काफी है और सघन भी है। इसको देखते हुए नीतीश कुमार ने पिछले लोकसभा चुनाव में चंद्रेश्वर चंद्रवंशी को अपना उम्मीदवार बना दिया। राजद के सुरेंद्र यादव को पराजित करने के लिए भूमिहारों ने जदयू उम्मीदवार के पक्ष में जबरदस्त मतदान किया। काफी संघर्षपूर्ण मुकाबले में चंद्रेश्वर चंद्रवंशी निर्वाचित हुए। इसके साथ ही जहानाबाद सीट से यादव और भूमिहारों का आधिपत्य राजनीतिक रूप से समाप्त हो गया।
2024 के लोकसभा चुनाव में 2019 के परिणाम की धमक सुनाई देगी। भाजपा के कहार नेता भी इस सीट पर अपनी दावेदारी जता सकते हैं। ऐसे में विधान पार्षद डॉ प्रमोद चंद्रवंशी या पूर्व मंत्री प्रेम कुमार भी प्रबल दावेदार हो सकते हैं। इतना ही नहीं, महागठबंधन की दूसरी पार्टी भी जदयू की सीट पर जाति परंपरा के अनुसार अपना दावा जता सकते हैं।
जहानाबाद के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो सत्यभामा देवी, महेंद्र प्रसाद, अरुण कुमार और जगदीश शर्मा चार भूमिहार सांसद हुए हैं। जबकि यादव सांसद के रूप में चंद्रशेखर सिंह, हरिलाल प्रसाद सिन्हा, रामाश्रय प्रसाद सिंह, सुरेंद्र प्रसाद यादव और गणेश प्रसाद यादव का नाम आता है।