औरंगाबाद सीट से अब तक राजपूत जाति के सांसद ही निर्वाचित होते रहे हैं। नाम, पार्टी या परिवार भले बदल गया हो, लेकिन सांसद की जाति एक ही रही है। परिसीमन के बाद औरंगाबाद लोसकभा क्षेत्र में तीन विधान सभा क्षेत्र गया जिले और तीन विधान सभा क्षेत्र औरंगाबाद जिले के हैं। इस कारण लोकसभा सीट का जातीय समीकरण बदल गया है। परिसीमन के पहले इस सीट पर राजपूत का प्रभाव माना जाता था। इस कारण दोनों प्रमुख पार्टियां राजपूत को ही अपना उम्मीदवार बनाती थीं। लेकिन परिसीमन के बाद स्थिति बदली। इस क्षेत्र में कुशवाहा और दांगी जाति के वोटरों की संख्या बढ़ गयी है। तीन चुनावों से उम्मीदवरों के चयन में प्राथमिकता बदली है।
2009 में जदयू के सुशील सिंह उम्मीदवार थे तो राजद ने शकील अहमद खान को अपना उम्मीदवार बनाया था। 2014 में सुशील सिंह ने पलटी मारी और भाजपा के साथ चले गये। 2014 में बागी कुमार वर्मा जदयू के उम्मीदवार थे। इस चुनाव में कांग्रेस ने निखिल कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया था। जबकि 2019 में सुशील सिंह भाजपा के उम्मीदवार थे और राजद समर्थित हम के उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद थे। बागी वर्मा और उपेंद्र प्रसाद दोनों दांगी जाति से आते हैं। मतलब यह है कि औरंगाबाद से राजपूतों का खूंटा उखाड़ने का प्रयास तेज हो गया है। इस कोशिश को कब सफलता मिलती है। इसका इंतजार करना होगा।