औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र 1957 में अस्तित्व में आया। 1957 में यहां से पहली बार सत्येंद्र नारायण सिंह लोकसभा के चुने गये थे। 1952 में गया नाम से तीन लोकसभा क्षेत्र था- गया पूर्वी, गया उत्तरी और गया पश्चिमी। गया पूर्वी डबल सीट कंस्टीच्यूनेसी थी। 1952 में सत्येंद्र नारायण सिंह गया पश्चिम से लोकसभा के लिए चुने गये थे। दूसरी बार 1957 में औरंगाबाद से निर्वाचित हुए। इसके बाद 1962 में स्वतंत्र पार्टी की ललिता राजलक्ष्मी निर्वाचित हुईं, जबकि 1967 में कांग्रेस के मुंद्रिका सिंह निर्वाचित हुए। इसके बाद 1971 में सत्येंद्र नारायण् सिह कांग्रेस से जबकि 1977 में जनता पार्टी से निर्वाचित हुए। 1980 में जनता एस (चरण) के टिकट पर निर्वाचित हुए। वह लंबे समय तक औरंगाबाद का प्रतिनिधित्व करते रहे। इसके बाद औरंगाबाद सीट दो परिवारों का बंधक बन गया। सत्येंद्र नारायण सिंह के उनके पुत्र निखिल कुमार और पुत्रवधू श्यामा सिन्हा लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। बाद में रामनरेश सिंह और उनके पुत्र सुशील सिंह कई टर्म निर्वाचित हुए। अभी सुशील सिंह ही सांसद हैं। बीच में एक बार वीरेंद्र कुमार सिंह भी निर्वाचित हुए थे।
औरंगाबाद सीट से अब तक राजपूत जाति के सांसद ही निर्वाचित होते रहे हैं। नाम, पार्टी या परिवार भले बदल गया हो, लेकिन सांसद की जाति एक ही रही है। परिसीमन के बाद औरंगाबाद लोसकभा क्षेत्र में तीन विधान सभा क्षेत्र गया जिले और तीन विधान सभा क्षेत्र औरंगाबाद जिले के हैं। इस कारण लोकसभा सीट का जातीय समीकरण बदल गया है। परिसीमन के पहले इस सीट पर राजपूत का प्रभाव माना जाता था। इस कारण दोनों प्रमुख पार्टियां राजपूत को ही अपना उम्मीदवार बनाती थीं। लेकिन परिसीमन के बाद स्थिति बदली। इस क्षेत्र में कुशवाहा और दांगी जाति के वोटरों की संख्या बढ़ गयी है। तीन चुनावों से उम्मीदवरों के चयन में प्राथमिकता बदली है।
2009 में जदयू के सुशील सिंह उम्मीदवार थे तो राजद ने शकील अहमद खान को अपना उम्मीदवार बनाया था। 2014 में सुशील सिंह ने पलटी मारी और भाजपा के साथ चले गये। 2014 में बागी कुमार वर्मा जदयू के उम्मीदवार थे। इस चुनाव में कांग्रेस ने निखिल कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया था। जबकि 2019 में सुशील सिंह भाजपा के उम्मीदवार थे और राजद समर्थित हम के उम्मीदवार उपेंद्र प्रसाद थे। बागी वर्मा और उपेंद्र प्रसाद दोनों दांगी जाति से आते हैं। मतलब यह है कि औरंगाबाद से राजपूतों का खूंटा उखाड़ने का प्रयास तेज हो गया है। इस कोशिश को कब सफलता मिलती है। इसका इंतजार करना होगा।