काफी पीड़ादायक होता है कि असफल हो जाना। खबरों के बाजार में हमने कई प्रयोग किये, इसमें से अधिकतर विफल हो गये। हमने हाल में अपने पाठकों के साथ साझा किया था कि युवाओं के लिए एक नयी पत्रिका ‘कैरियर कारोबार’ प्रकाशित करेंगे। इसके लिए कई स्तर पर चर्चा भी की थी, लेकिन उस पहल की भ्रूण हत्या हो गयी। आकार ग्रहण करने के पहल ही निराकार हो गयी।
पिछले सात वर्षों में हमने पत्रकारिता की वैकल्पिक विधाओं के कई प्रयोग किये। इस दिशा में पहला प्रयोग वीरेंद्र यादव न्यूज था, वह नियमित बना रहा। इसके अलावा हर कोशिश निष्फल हुई। वीरेंद्र यादव न्यूज के 2 साल बाद हमने काराकाट न्यूज नामक मासिक पत्रिका शुरू की थी, लेकिन 6 अंकों में उसका दम टूट गया। इसके बाद वीरेंद्र यादव न्यूज के साप्ताहिक संस्करण की शुरुआत की, लेकिन 4 सप्ताह की यात्रा भी पूरी नहीं कर सका। हमने यूट्यूब चलाने की कई कोशिश की और फिर छोड़कर भाग गये। वीरेंद्र यादव न्यूज का पोर्टल भी कई बार बेदम होने के बाद फिर इसी जनवरी महीने से शुरुआत की है। इस बार हमने इसके लिए एक साथी को भी जोड़ रखा है। इस बीच हमारा कैरियर कारोबार नामक पत्रिका का प्लान जमीन पर नहीं उतर सका।
यह है हमारी विफलता का दास्तान। एक शुभचिंतक के लिए इन विफलताओं पर ठहाके लगाने के लिए कई कारण मौजूद हैं। कभी-कभी हम अपनी विफलताओं पर हँस लेते हैं। वाकई बहुत मुश्किल होता है, जब एक के बाद एक सपना ध्वस्त होता है और फिर नये सपने संवारने की बेचैनी शुरू हो जाती है।
अब हमने तय है कि फिलहाल किसी नयी पत्रिका की शुरुआत के बजाये वीरेंद्र यादव न्यूज में ही खबरों का दायरा बढ़ाया जाये। राजनीति के साथ प्रशासनिक और कैरियर से जुड़ी खबरों को जगह दी जाये। इसी पत्रिका का पन्ना बढा़कर इसमें अन्य तरह की खबरों को समायोजित किया जाये। दरअसल हमारे सामने सबसे बड़ा संकट कंटेंट का होता है। राजनीतिक खबरें हम खुद कर लेते हैं, प्रशासनिक खबरों का भी कोई संकट नहीं है। लेकिन अन्य तरह की खबरें हमारे लिए जहमत बन जाती हैं। तकनीकी के आधार पर हम कमजोर पड़ जाते हैं। हमको लैपटॉप पर टाइप करने के साथ वाट्सएप, फेसबुक या ईमेल के अलावा कुछ नहीं आता है। यही हाल मोबा. के साथ भी है। फोन सुनने, करने और वाट्सएप चलाने के अलावा कुछ नहीं आता है। हमें लगता है कि तकनीकी रूप से अधिक जानकार बनकर क्या करना है। मोटरसाइकिल चलाने के लिए मोटर मैकेनिक होना जरूरी थोड़े ही है।
कभी-कभी हम खुद का मूल्यांकन नहीं कर पाते हैं। हम अपनी सफलता या विफलता का मानदंड तय नहीं कर पाते हैं। हम हर बार अपना मूल्यांकन अपने परिप्रेक्ष्य में ही करते हैं। हमारे पास जो क्षमता, संसाधन या संभावना है, उसी के संदर्भ में अपनी विफलताओं का आकलन करते हैं। इस आकलन में हमें लगता है कि अपनी क्षमता, संसाधन और संभावनाओं का हम सर्वोत्तम दोहन करते हैं और इससे बेहतर परिणाम हासिल करना भी संभव नहीं है।